भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बचपन की चाहत / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन चौहान |अनुवादक= |संग्रह=किनार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 31: पंक्ति 31:
 
अपनी खोयी मस्ती में
 
अपनी खोयी मस्ती में
 
उसी तोतली बोली के
 
उसी तोतली बोली के
गुदगुदाते षब्दों में।
+
गुदगुदाते शब्दों में।
 
</poem>
 
</poem>

00:30, 9 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

मैं अब जान चुका हूँ अंतर
ऊँचाई और गहराई में
झूठ और सच्चाई में
अपने और पराए में
आजादी और गुलामी में
पाप पुण्य में
जात पात में
काले गोरे में
बसंत और पतझड़ में
फूल और कांटे में भी

आज जान गया हूँ मैं
बहुत कुछ
अनुभव की भट्ठी की तपन का
मुझे एहसास है
आ गया है मुझे
टेढ़े-मेढे रास्तों पर सीधे चलना

पर फिर भी न जाने क्यों
लौट जाना चाहता हूँ मैं
उसी भूलभूलैया
उन्ही टेढे-मेढे रास्तों पर
अपनी खोयी मस्ती में
उसी तोतली बोली के
गुदगुदाते शब्दों में।