भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बार अंध्यारनि मैँ भटक्यो हौँ / दास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दास }} <poem> बार अंध्यारनि मैँ भटक्यो हौँ , निकारयो ...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=दास | |रचनाकार=दास | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatChhand}} | |
<poem> | <poem> | ||
बार अंध्यारनि मैँ भटक्यो हौँ , | बार अंध्यारनि मैँ भटक्यो हौँ , | ||
− | निकारयो मैँ नीठि सुबुद्धिन सोँ | + | निकारयो मैँ नीठि सुबुद्धिन सोँ धरि। |
बूढ़त आनन पानिय भीर, | बूढ़त आनन पानिय भीर, | ||
− | पहीर की आंड़ सोँ तीर लग्यो | + | पहीर की आंड़ सोँ तीर लग्यो तिरि। |
मो मन बावरो योँ ही हुत्यो , | मो मन बावरो योँ ही हुत्यो , | ||
− | अधरा मधु पान कै मूढ़ छक्यो | + | अधरा मधु पान कै मूढ़ छक्यो फिरि। |
दास कहौ अब कैसे कढ़े , | दास कहौ अब कैसे कढ़े , | ||
− | निज चाय सो ठोढ़ी के गाड़ परयो | + | निज चाय सो ठोढ़ी के गाड़ परयो गिरि। |
− | + | ||
''' दास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। | ''' दास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। | ||
</Poem> | </Poem> |
04:21, 16 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
बार अंध्यारनि मैँ भटक्यो हौँ ,
निकारयो मैँ नीठि सुबुद्धिन सोँ धरि।
बूढ़त आनन पानिय भीर,
पहीर की आंड़ सोँ तीर लग्यो तिरि।
मो मन बावरो योँ ही हुत्यो ,
अधरा मधु पान कै मूढ़ छक्यो फिरि।
दास कहौ अब कैसे कढ़े ,
निज चाय सो ठोढ़ी के गाड़ परयो गिरि।
दास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।