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"ओजस्वी सौमित्रि / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर
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मदको त्याग, तोड़ मालाको, बोले कपिपति-’छोड़ो रोष॥ | मदको त्याग, तोड़ मालाको, बोले कपिपति-’छोड़ो रोष॥ | ||
रामकृञ्पासे ही पाया मैंने श्री, कीर्ति, राज्य सर्वस्व। | रामकृञ्पासे ही पाया मैंने श्री, कीर्ति, राज्य सर्वस्व। | ||
− | + | राघवके उपकार अमित का? या मैं बदला दूँ निस्सव॥ | |
होगा प्रभुकी महिमासे ही रावण-वध, सीता-उद्धार। | होगा प्रभुकी महिमासे ही रावण-वध, सीता-उद्धार। | ||
मैं नगण्य भी पान्नँञ्गा सेवाका शुचि सौभाग्य अपार’॥ | मैं नगण्य भी पान्नँञ्गा सेवाका शुचि सौभाग्य अपार’॥ | ||
ताराने भी मधुर नम्र वचनोंसे स्थितिका किया बखान। | ताराने भी मधुर नम्र वचनोंसे स्थितिका किया बखान। | ||
− | मृदु-स्वभाव लक्ष्मणने हो | + | मृदु-स्वभाव लक्ष्मणने हो संतुष्ट किया तत्क्षण प्रस्थान॥ |
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11:54, 29 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
‘ओजस्वी सौमित्रि करो तुम क्षमा हमारे सारे दोष’।
मदको त्याग, तोड़ मालाको, बोले कपिपति-’छोड़ो रोष॥
रामकृञ्पासे ही पाया मैंने श्री, कीर्ति, राज्य सर्वस्व।
राघवके उपकार अमित का? या मैं बदला दूँ निस्सव॥
होगा प्रभुकी महिमासे ही रावण-वध, सीता-उद्धार।
मैं नगण्य भी पान्नँञ्गा सेवाका शुचि सौभाग्य अपार’॥
ताराने भी मधुर नम्र वचनोंसे स्थितिका किया बखान।
मृदु-स्वभाव लक्ष्मणने हो संतुष्ट किया तत्क्षण प्रस्थान॥