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"गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 5 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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उहां करुण रस स्वयं उपस्थित, सुख के अवसर तक हे साथ
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दुकली सुसकत मइके त्यागत, पति के साथ चलत ससुरार।
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नांदगांव ले छुटिन बरतिया, रुकथंय पहुंच करेला गांव
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बचे रिवाज ला तड़के निपटा, कुटुम मीत मन वापिस गीन।
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कथय गरीबा हा दसरूला -”तुंगतुंगाय तंय करे बिहाव
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तंय अउ दुकली एका होए, तुम्मन अब सितराव जुड़ाव।
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यदि मंय अंड़ के रुक जावत हंव, तुम्हर प्रेम मं परिहय आड़
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तेकर ले मंय लहुट के जावत, उंहचो अड़े गंज अक काम।”
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पप्ची-करी के लाड़ू-अरसा, दसरू लैस बांध उरमाल
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दीस गरीबा ला हर्षित मन, मित्र ला एल्हत खुलखुल हांस-
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“जेन कलेवा मंय अभि देवत, तंय रखबे दुखिया के हाथ
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तंय बिहाव मं डंट खाये हस, रोटी झन जाये मुंह तोर।”
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हवय गरीबा के मन हा खुश रेंगिस धर के रोटी।
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सुन्तापुर मं पहुंचिन तंहने आवत हे थर्रासी।
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सब ग्रामीण दउड़ के आइन, सब तन घेर के होथंय ठाड़
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ओमन धरे अस्त्र धरहा कइ, क्रोध ले कांपत लदलद देंह।
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आंख लाल पुतरी मन किंजरत, ऊपर तरी बिरौनी नाक
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भीड़ बीच ले कातिक आथय, दीस गरीबा ला रट मार।
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बग ले बरिस गरीबा आंखी, संख असन उड़गे बुध चेत
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करा अउ कीरा हा कर देथय, हरियर खेत ला चरपट नाश।
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“मोला उमंझ आत नइ थोरको, तुम काबर हव खूब नराज
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मोर दोष का- काय कुजानिक, फोर देव तुम बिल्कुल साफ?”
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मंगिस गरीबा सच उत्तर तंह, ग्रामीण मन होथंय कुछ शांत
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हगरूहा गुस्सा मं धधकत, तेहर फोरत साफ रहस्य –
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“तंय गोल्लर अस छेल्ला किंजरत, बर बिहाव के लड़ुवा खास
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सुन्तापुर मं जे बांचे हन, बिना अन्न जल करन उपास!
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हमर भलाई ला करबे कहि, माने हवन तोर विश्वास
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पर कर्तव्य भूल के किंजरत, लगथय – एमां कपट के दांत।
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तंय अनुपस्थित ते बेरा मं, धनवा करिस काम बेकलाम
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अपन भविष्य के खुशियाली बर, हमर भविष्य ला करदिस नाश।
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धनसहाय के खेत गेन हन, बिरता ला हम लाय सकेल
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मींजकूट के अन्न सिधोये, पर ए बीच झपागे आड़।
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धनवा हा कोतल संग धमकिस, झटक के लेगिस जमों अनाज
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ओकर कब्जा अन धन पर हे, हम बइठे हन जुच्छा हाथ।
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धनवा हा मेंछा ला अंइठत, डकहर सुखी हें ओकर साथ
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बाड़ा अंदर छुपे सुरक्षित, अन्न झटक के भोगत राज।”
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सनम हा गरीबा ला बोलिस, मीठ शब्द पर जहर समान –
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“मानव ला कुकर्म करना तब, निज चरित्र के करत सुधार।
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जब विश्वास सबो तन जमथय, तंहने चलत कुचाल के राह
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खुद ला रक्षित अस राखे बर, पर हा गिरे रचत षड़यंत्र।
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जनता होय दिग्भ्रमित कहिके, तंय जोंगे जनहित के काम
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पर अब भक ले धोखा देवत, पर परखे हन तोर कुनीत।
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खुद के दोष छिपाये बर तंय, मोला बनवा देस सियान
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तंय निर्दाेष प्रमाणित होवत, बद्दी हा चढ़गे मुड़ मोर।
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खेल कबड्डी गदबद होवत, दू दल “चंदा सूरज’ नाम
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चन्दा दल हा खेल ला हारत, उहां बचे सुकलू बस एक।
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सुकलू हा खुडुवाये जावत, सूरज दल के अंदर गीस
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पकड़िन सूरज दल के मनखे, तंह सुकलू गिर गीस जमीन।
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सुकलू घंसलत आगू बढ़थय, पहुंचिस मांई डांड़ के पास
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खब ले मांई डांड़ ला छूथय, ओतको बखत चलत हे सांस।
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जतका सूरज दल के मनखे, तेमन मर के हारिन खेल
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चन्दा दल हा विजयी होगे, जेहर पहिली पावत हार।
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हम्मन खेलत हवन कबड्डी, पर धोखा आखिर छिन पाय
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विजय पाय बर रखे भरोसा, तेकर गला हार के हार।
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जे धनवा हा खेल ला हारत, तेहर गप ले अमरिस जीत।
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आखिर छन मं भूल करे हन, ओकर दुष्फल भोगत आज।”
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सुन बिखेद ललियात गरीबा, पर सम्हाल के रखिस विवेक
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अपन साथ मं भीड़ ला धरथय, चलथय पूर्ण करे बर टेक।
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करिस गरीबा वाकई गल्ती, ऐन वक्त पर डिगगे पांव
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कतको सुदृढ़ तर्क ला राखत, पर ओहर बदरा अस धान।
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सिरिफ काम हा बाचे हे अभि, जेन प्रमाणित करिहय सत्य
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जब सब तर्क हार जाथय तब, मात्र कर्म हा आथय काम।
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धनवा पास गीन एमन तब, धनवा बइठे ठसका मार
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डकहर सुखी चिपट तिर बइठे, मानों आय हितू गोतियार।
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कथय गरीबा हा धनवा ला -”मोर पास तंय हुंकी भरेस
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जतका चीज गांव मं हावय, ओमां सबके सम अधिकार।
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लेकिन अपन बचन टोरे हस, जमों अनाज अपन घर लाय
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अपन राज तंय फेर चला झन। चल वापिस कर सबो अनाज।”
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धनवा रखे कलेचुप बोली, डकहर सुखी कूदगें बीच
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धनवा ला बांचय कहि एमन, अपन वक्ष ला पहिले लात।
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डकहर कथय -”करिस धनवा हा, अपन चीज ला निज अधिकार
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पर के चीज चोरा नइ लानिस, का अधिकार मंगे बर चीज?”
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बोलिस सुखी -”अगर भूखा हव, तब तुम लेगव मांग अनाज
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दान चहत तब तक ले जावव, या लेगव लागा बिन ब्याज।
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पर धनवा के सब पूंजी पर, तुम्मन अगर चहत अधिकार
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हमर रहत तक हे कठिनाई, मुश्किल काम हाथ झन लेव।”
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धनवा के अनियाव ला जांहा, डकहर सुखी बताइन ठीक
 +
मेहरू ओकर अर्थ समझगे, जानिस सब अंदर के भेद।
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मेहरू सब ग्रामीण ला बोलिस -”धनवा चलत गलत अस चाल
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जतका दोष मात्र ओकर पर, दण्डित करव जउन मन होय।
 
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14:43, 9 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

उहां करुण रस स्वयं उपस्थित, सुख के अवसर तक हे साथ
दुकली सुसकत मइके त्यागत, पति के साथ चलत ससुरार।
नांदगांव ले छुटिन बरतिया, रुकथंय पहुंच करेला गांव
बचे रिवाज ला तड़के निपटा, कुटुम मीत मन वापिस गीन।
कथय गरीबा हा दसरूला -”तुंगतुंगाय तंय करे बिहाव
तंय अउ दुकली एका होए, तुम्मन अब सितराव जुड़ाव।
यदि मंय अंड़ के रुक जावत हंव, तुम्हर प्रेम मं परिहय आड़
तेकर ले मंय लहुट के जावत, उंहचो अड़े गंज अक काम।”
पप्ची-करी के लाड़ू-अरसा, दसरू लैस बांध उरमाल
दीस गरीबा ला हर्षित मन, मित्र ला एल्हत खुलखुल हांस-
“जेन कलेवा मंय अभि देवत, तंय रखबे दुखिया के हाथ
तंय बिहाव मं डंट खाये हस, रोटी झन जाये मुंह तोर।”
हवय गरीबा के मन हा खुश रेंगिस धर के रोटी।
सुन्तापुर मं पहुंचिन तंहने आवत हे थर्रासी।
सब ग्रामीण दउड़ के आइन, सब तन घेर के होथंय ठाड़
ओमन धरे अस्त्र धरहा कइ, क्रोध ले कांपत लदलद देंह।
आंख लाल पुतरी मन किंजरत, ऊपर तरी बिरौनी नाक
भीड़ बीच ले कातिक आथय, दीस गरीबा ला रट मार।
बग ले बरिस गरीबा आंखी, संख असन उड़गे बुध चेत
करा अउ कीरा हा कर देथय, हरियर खेत ला चरपट नाश।
“मोला उमंझ आत नइ थोरको, तुम काबर हव खूब नराज
मोर दोष का- काय कुजानिक, फोर देव तुम बिल्कुल साफ?”
मंगिस गरीबा सच उत्तर तंह, ग्रामीण मन होथंय कुछ शांत
हगरूहा गुस्सा मं धधकत, तेहर फोरत साफ रहस्य –
“तंय गोल्लर अस छेल्ला किंजरत, बर बिहाव के लड़ुवा खास
सुन्तापुर मं जे बांचे हन, बिना अन्न जल करन उपास!
हमर भलाई ला करबे कहि, माने हवन तोर विश्वास
पर कर्तव्य भूल के किंजरत, लगथय – एमां कपट के दांत।
तंय अनुपस्थित ते बेरा मं, धनवा करिस काम बेकलाम
अपन भविष्य के खुशियाली बर, हमर भविष्य ला करदिस नाश।
धनसहाय के खेत गेन हन, बिरता ला हम लाय सकेल
मींजकूट के अन्न सिधोये, पर ए बीच झपागे आड़।
धनवा हा कोतल संग धमकिस, झटक के लेगिस जमों अनाज
ओकर कब्जा अन धन पर हे, हम बइठे हन जुच्छा हाथ।
धनवा हा मेंछा ला अंइठत, डकहर सुखी हें ओकर साथ
बाड़ा अंदर छुपे सुरक्षित, अन्न झटक के भोगत राज।”
सनम हा गरीबा ला बोलिस, मीठ शब्द पर जहर समान –
“मानव ला कुकर्म करना तब, निज चरित्र के करत सुधार।
जब विश्वास सबो तन जमथय, तंहने चलत कुचाल के राह
खुद ला रक्षित अस राखे बर, पर हा गिरे रचत षड़यंत्र।
जनता होय दिग्भ्रमित कहिके, तंय जोंगे जनहित के काम
पर अब भक ले धोखा देवत, पर परखे हन तोर कुनीत।
खुद के दोष छिपाये बर तंय, मोला बनवा देस सियान
तंय निर्दाेष प्रमाणित होवत, बद्दी हा चढ़गे मुड़ मोर।
खेल कबड्डी गदबद होवत, दू दल “चंदा सूरज’ नाम
चन्दा दल हा खेल ला हारत, उहां बचे सुकलू बस एक।
सुकलू हा खुडुवाये जावत, सूरज दल के अंदर गीस
पकड़िन सूरज दल के मनखे, तंह सुकलू गिर गीस जमीन।
सुकलू घंसलत आगू बढ़थय, पहुंचिस मांई डांड़ के पास
खब ले मांई डांड़ ला छूथय, ओतको बखत चलत हे सांस।
जतका सूरज दल के मनखे, तेमन मर के हारिन खेल
चन्दा दल हा विजयी होगे, जेहर पहिली पावत हार।
हम्मन खेलत हवन कबड्डी, पर धोखा आखिर छिन पाय
विजय पाय बर रखे भरोसा, तेकर गला हार के हार।
जे धनवा हा खेल ला हारत, तेहर गप ले अमरिस जीत।
आखिर छन मं भूल करे हन, ओकर दुष्फल भोगत आज।”
सुन बिखेद ललियात गरीबा, पर सम्हाल के रखिस विवेक
अपन साथ मं भीड़ ला धरथय, चलथय पूर्ण करे बर टेक।
करिस गरीबा वाकई गल्ती, ऐन वक्त पर डिगगे पांव
कतको सुदृढ़ तर्क ला राखत, पर ओहर बदरा अस धान।
सिरिफ काम हा बाचे हे अभि, जेन प्रमाणित करिहय सत्य
जब सब तर्क हार जाथय तब, मात्र कर्म हा आथय काम।
धनवा पास गीन एमन तब, धनवा बइठे ठसका मार
डकहर सुखी चिपट तिर बइठे, मानों आय हितू गोतियार।
कथय गरीबा हा धनवा ला -”मोर पास तंय हुंकी भरेस
जतका चीज गांव मं हावय, ओमां सबके सम अधिकार।
लेकिन अपन बचन टोरे हस, जमों अनाज अपन घर लाय
अपन राज तंय फेर चला झन। चल वापिस कर सबो अनाज।”
धनवा रखे कलेचुप बोली, डकहर सुखी कूदगें बीच
धनवा ला बांचय कहि एमन, अपन वक्ष ला पहिले लात।
डकहर कथय -”करिस धनवा हा, अपन चीज ला निज अधिकार
पर के चीज चोरा नइ लानिस, का अधिकार मंगे बर चीज?”
बोलिस सुखी -”अगर भूखा हव, तब तुम लेगव मांग अनाज
दान चहत तब तक ले जावव, या लेगव लागा बिन ब्याज।
पर धनवा के सब पूंजी पर, तुम्मन अगर चहत अधिकार
हमर रहत तक हे कठिनाई, मुश्किल काम हाथ झन लेव।”
धनवा के अनियाव ला जांहा, डकहर सुखी बताइन ठीक
मेहरू ओकर अर्थ समझगे, जानिस सब अंदर के भेद।
मेहरू सब ग्रामीण ला बोलिस -”धनवा चलत गलत अस चाल
जतका दोष मात्र ओकर पर, दण्डित करव जउन मन होय।