भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शहर में साँप / 8 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatAngikaRachna}}
 
{{KKCatAngikaRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
साँप आरोॅ आदमी
+
साँप के डँसल
एक दिन
+
बैच सकै छै आदमी
अन्जान घोॅर में चैल गेलै
+
आदमी केॅ काटल
साँप/बिना केकरोॅ डँसने लौट गेलै
+
नै बैच सकै छै साँप।
किन्तु/आदमी
+
वै घोॅर में जहर छोॅड़ गेलै।
+
  
 
अनुवाद:
 
अनुवाद:
  
साँप और आदमी
+
साँप के डँसे
एक दिन
+
बच सकता है आदमी
अन्जाने घर में चला गया
+
आदमी के काटे
साँप/बिना किसी को डँसे लौट गया
+
नहीं बच सकता है साँप
किन्तु आदमी
+
उस घर में
+
अपना जहर छोड़ गया।
+
 
</poem>
 
</poem>

14:35, 1 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

साँप के डँसल
बैच सकै छै आदमी
आदमी केॅ काटल
नै बैच सकै छै साँप।

अनुवाद:

साँप के डँसे
बच सकता है आदमी
आदमी के काटे
नहीं बच सकता है साँप