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"परतंत्रता की गाँठ / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'" के अवतरणों में अंतर

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बीतीं दासता में पड़े सदियाँ, न मुक्ति मिली
 
बीतीं दासता में पड़े सदियाँ, न मुक्ति मिली

16:47, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

बीतीं दासता में पड़े सदियाँ, न मुक्ति मिली
पीर मन की ये मन ही मन पिराती है

देवकी-सी भारत मही है हो रही अधीर
बार-बार वीर ब्रजचन्द को बुलाती है

चालीस करोड़ पुत्र करते हैं पाहि-पाहि
त्राहि-त्राहि-त्राहि ध्वनि गगन गुंजाती है

जाने कौन पाप है पुरातन उदय हुआ
परतन्त्रता की गाँठ खुलने न पाती है