"शैदाए वतन / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'" के अवतरणों में अंतर
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हम भी दिल रखते हैं सीने में जिगर रखते हैं, | हम भी दिल रखते हैं सीने में जिगर रखते हैं, | ||
− | इश्क़-ओ-सौदाय वतन रखते हैं, सर रखते | + | इश्क़-ओ-सौदाय वतन रखते हैं, सर रखते हैं। |
माना यह ज़ोर ही रखते हैं न ज़र रखते हैं, | माना यह ज़ोर ही रखते हैं न ज़र रखते हैं, | ||
− | बलबला जोश-ए-मोहब्बत का मगर रखते | + | बलबला जोश-ए-मोहब्बत का मगर रखते हैं। |
कंगूरा अर्श का आहों से हिला सकते हैं, | कंगूरा अर्श का आहों से हिला सकते हैं, | ||
− | ख़ाक में गुम्बदे-गरर्दू को मिला सकते | + | ख़ाक में गुम्बदे-गरर्दू को मिला सकते हैं॥ |
शैक़ जिनको हो सताने का, सताए आएँ; | शैक़ जिनको हो सताने का, सताए आएँ; | ||
− | रू-ब-रू आके हों, यों मुँह न छिपाए, | + | रू-ब-रू आके हों, यों मुँह न छिपाए, आएँ। |
देख लें मेरी वफ़ा आएँ, जफ़ाएँ आएँ, | देख लें मेरी वफ़ा आएँ, जफ़ाएँ आएँ, | ||
− | दौड़कर लूँगा बलाएँ मैं बलाए | + | दौड़कर लूँगा बलाएँ मैं बलाए आएँ। |
दिल वह दिल ही नहीं जिसमें कि भरा दर्द नहीं, | दिल वह दिल ही नहीं जिसमें कि भरा दर्द नहीं, | ||
− | सख्तियाँ सब्र से झेले न जो वह मर्द | + | सख्तियाँ सब्र से झेले न जो वह मर्द नहीं॥ |
कैसे हैं पर किसी लेली के गिरिफ़्तार नहीं, | कैसे हैं पर किसी लेली के गिरिफ़्तार नहीं, | ||
− | कोहकन है किसी शीरीं से सरोकार | + | कोहकन है किसी शीरीं से सरोकार नहीं। |
ऐसी बातों से हमें उन्स नहीं, प्यार नहीं, | ऐसी बातों से हमें उन्स नहीं, प्यार नहीं, | ||
− | हिज्र के वस्ल के क़िस्से हमें दरकार | + | हिज्र के वस्ल के क़िस्से हमें दरकार नहीं। |
जान है उसकी पला जिससे यह तन अपना है, | जान है उसकी पला जिससे यह तन अपना है, | ||
− | दिल हमारा है बसा उसमें, वतन अपना | + | दिल हमारा है बसा उसमें, वतन अपना है॥ |
यह वह गुल है कि गुलों का भी बकार इससे है, | यह वह गुल है कि गुलों का भी बकार इससे है, | ||
− | चमन दहर में यक ताज़ा बहार इससे | + | चमन दहर में यक ताज़ा बहार इससे है। |
बुलबुले दिल को तसल्ली ओ’ करार इसके है, | बुलबुले दिल को तसल्ली ओ’ करार इसके है, | ||
बन रहा गुलचीं की नज़रों में य्ह खार इससे है। | बन रहा गुलचीं की नज़रों में य्ह खार इससे है। | ||
चर्ख-कजबाज़ के हाथों से बुरा हाल न हो, | चर्ख-कजबाज़ के हाथों से बुरा हाल न हो, | ||
− | यह शिगुफ़्ता रहे हरदम, कभी पामाल न | + | यह शिगुफ़्ता रहे हरदम, कभी पामाल न हो॥ |
आरजू है कि उसे चश्मए ज़र से सींचे, | आरजू है कि उसे चश्मए ज़र से सींचे, | ||
− | बन पड़े गर तो उसे आवे-गुहर से | + | बन पड़े गर तो उसे आवे-गुहर से सींचे। |
आवे हैवां न मिले दीदये तर से सींचे, | आवे हैवां न मिले दीदये तर से सींचे, | ||
− | आ पड़े वक़्त तो बस ख़ूने जिगर से | + | आ पड़े वक़्त तो बस ख़ूने जिगर से सींचे। |
हड्डियाँ रिज़्के हुमाँ बनके न बरबाद रहें, | हड्डियाँ रिज़्के हुमाँ बनके न बरबाद रहें, | ||
− | घुल के मिट्टी में मिलें, खाद बने याद | + | घुल के मिट्टी में मिलें, खाद बने याद रहे॥ |
हम सितम लाख सहें शायर-ए-बेदाद रहें, | हम सितम लाख सहें शायर-ए-बेदाद रहें, | ||
− | आहें थामे हुए रोके हुए फ़रियाद | + | आहें थामे हुए रोके हुए फ़रियाद रहें। |
हम रहें या न रहें ऐसे रहें याद रहें, | हम रहें या न रहें ऐसे रहें याद रहें, | ||
− | इसकी परवाह है किसे शाद कि नाशाद | + | इसकी परवाह है किसे शाद कि नाशाद रहें। |
हम उजड़ते हैं तो उजड़ें वतन आबाद रहे, | हम उजड़ते हैं तो उजड़ें वतन आबाद रहे, | ||
− | हो गिरिफ़्तार तो हों पर वतन आज़ाद | + | हो गिरिफ़्तार तो हों पर वतन आज़ाद रहे॥ |
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16:55, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
हम भी दिल रखते हैं सीने में जिगर रखते हैं,
इश्क़-ओ-सौदाय वतन रखते हैं, सर रखते हैं।
माना यह ज़ोर ही रखते हैं न ज़र रखते हैं,
बलबला जोश-ए-मोहब्बत का मगर रखते हैं।
कंगूरा अर्श का आहों से हिला सकते हैं,
ख़ाक में गुम्बदे-गरर्दू को मिला सकते हैं॥
शैक़ जिनको हो सताने का, सताए आएँ;
रू-ब-रू आके हों, यों मुँह न छिपाए, आएँ।
देख लें मेरी वफ़ा आएँ, जफ़ाएँ आएँ,
दौड़कर लूँगा बलाएँ मैं बलाए आएँ।
दिल वह दिल ही नहीं जिसमें कि भरा दर्द नहीं,
सख्तियाँ सब्र से झेले न जो वह मर्द नहीं॥
कैसे हैं पर किसी लेली के गिरिफ़्तार नहीं,
कोहकन है किसी शीरीं से सरोकार नहीं।
ऐसी बातों से हमें उन्स नहीं, प्यार नहीं,
हिज्र के वस्ल के क़िस्से हमें दरकार नहीं।
जान है उसकी पला जिससे यह तन अपना है,
दिल हमारा है बसा उसमें, वतन अपना है॥
यह वह गुल है कि गुलों का भी बकार इससे है,
चमन दहर में यक ताज़ा बहार इससे है।
बुलबुले दिल को तसल्ली ओ’ करार इसके है,
बन रहा गुलचीं की नज़रों में य्ह खार इससे है।
चर्ख-कजबाज़ के हाथों से बुरा हाल न हो,
यह शिगुफ़्ता रहे हरदम, कभी पामाल न हो॥
आरजू है कि उसे चश्मए ज़र से सींचे,
बन पड़े गर तो उसे आवे-गुहर से सींचे।
आवे हैवां न मिले दीदये तर से सींचे,
आ पड़े वक़्त तो बस ख़ूने जिगर से सींचे।
हड्डियाँ रिज़्के हुमाँ बनके न बरबाद रहें,
घुल के मिट्टी में मिलें, खाद बने याद रहे॥
हम सितम लाख सहें शायर-ए-बेदाद रहें,
आहें थामे हुए रोके हुए फ़रियाद रहें।
हम रहें या न रहें ऐसे रहें याद रहें,
इसकी परवाह है किसे शाद कि नाशाद रहें।
हम उजड़ते हैं तो उजड़ें वतन आबाद रहे,
हो गिरिफ़्तार तो हों पर वतन आज़ाद रहे॥