भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आ... रा... रा... रा... रा... रा...! / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:30, 16 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
टिक-टिक, टिक-टिक
टिक-टिक, टिक-टिक
टिक-टिक बोले घड़ी मेरी,
घड़ी में बज गए बा...राकृ।
आ...रा...रा...रा...रा...रा...!
बारा बजकर पाँच मिनट पर
खाएँगे हम सब खाना,
बारा बजकर बीस मिनट पर
सब के सब चुप हो जाना,
बारा बजकर तीस मिनट पर
फूटेगा गुब्बा...रा।
आ...रा...रा...रा...रा...रा...!
घड़ी की टिक-टिक बता रहा है
चिक-चिक, चिक-चिक मत करना,
ठीक समय पर रात को सोना
ठीक समय सुबह जगना,
समय को साधा जिसने, उसकी
मुट्ठी में जग सा...रा।
आ...रा...रा...रा...रा...रा...!