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"इन दिनों वह-1 / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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11:26, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

इन दिनों
अक्सर देखती है वह
पेडों को गुनगुनाते हुए
उसके लिए गुब्बारे की तरह
हल्की हो चुकी है धरती
और आसमान से लगतार आती है
बाजों की गूँज

इन दिनों
उसे सुनाई देती है हर समय
एक धीमी और फूलों के बहुत पास से
आती हुई झिलमिल हँसी

वह सिर्फ़ एक सपना बुनती है इन दिनों

इन दिनों
वह जीवन के
सबसे पवित्र अनुभव से गुज़र रही है
वह माँ बन रही है इन दिनों ।