भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इन दिनों वह-2 / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |संग्रह= }} <Poem> उसने दहलीज पर बनाई है ...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण | + | |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |
− | |संग्रह= | + | |अनुवादक= |
+ | |संग्रह=जो राख होने से बचे हैं अभी तक / ब्रजेश कृष्ण | ||
}} | }} | ||
− | < | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
उसने दहलीज पर बनाई है अल्पना | उसने दहलीज पर बनाई है अल्पना | ||
ड्वार पर टाँगा है बन्दनवार | ड्वार पर टाँगा है बन्दनवार |
11:27, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
उसने दहलीज पर बनाई है अल्पना
ड्वार पर टाँगा है बन्दनवार
उसने बहुत मन से सजाया है पालना
और छोटे से तकिए पर काढ़े हैं
गुलदाउदी के फूल
सात समुद्र पार अनजानी धरती पर
ख़ुश है वह कि पाने को है
जीवन की अर्थवत्ता
देवताओं को आगाह कर वह उठी है अभी
वह बिछा रही है तारों-नक्षत्रों और
रात के सुनहरे उजास से बना बूटेदार क़ालीन
आने वाले शिशु के लिए
प्रतीक्षारत है वह
वह आतुर हो रही है
वह हँस रही है
वह गा रही है
वह चकित हो रही है
वह बीज से वृक्ष हो रही है।