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"थक के चूर हो गए आईने / विजय किशोर मानव" के अवतरणों में अंतर

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15:42, 20 मार्च 2017 के समय का अवतरण

थक के चूर हो गए आईने
कोई आया नहीं सामने

उनको सातों समंदर दिए,
इनको प्यासी नदी राम ने

गांव-भर में अंधेरा किया
धूप पर मेरे इल्ज़ाम ने

हाथ बांधे खड़े हैं अदीब,
बोलियां लग रहीं सामने

लड़खड़़ाते हैं सारे चलन,
आंधियां आ रहीं थामने