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"महतारी भाषा बचाई / हरिदेव सहतू" के अवतरणों में अंतर
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− | + | गरम लगी | |
− | + | अमृत बरसी | |
− | + | ठंडी लगी | |
− | + | बन सुरुज चमकी | |
− | + | अँधियार होई | |
− | + | बन चन्दा मुस्काई। | |
− | + | महतारी भाषा रोइ | |
− | + | के अब बचाई | |
− | + | बादर, सुरुज चन्दा बन जा | |
− | + | अँधकार जाई | |
− | + | रोशनी आई | |
− | + | सरनाम के | |
− | + | घर आँगन | |
− | + | खेत जंगल से | |
− | + | लेई के चली | |
− | + | महक महक के | |
− | + | मधुर बानी | |
− | + | सुनावे सबके | |
− | + | अजवा अजिया | |
− | + | नाना ननिया | |
− | + | तोहार हमार | |
− | + | हृदय मन के | |
− | + | एकता प्रेम | |
− | + | प्यार के बतिया। | |
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18:22, 26 मई 2017 के समय का अवतरण
गरम लगी
अमृत बरसी
ठंडी लगी
बन सुरुज चमकी
अँधियार होई
बन चन्दा मुस्काई।
महतारी भाषा रोइ
के अब बचाई
बादर, सुरुज चन्दा बन जा
अँधकार जाई
रोशनी आई
सरनाम के
घर आँगन
खेत जंगल से
लेई के चली
महक महक के
मधुर बानी
सुनावे सबके
अजवा अजिया
नाना ननिया
तोहार हमार
हृदय मन के
एकता प्रेम
प्यार के बतिया।