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"मौसम के रंग / नीरजा हेमेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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धूसर भूमि
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जब कभी उदास होता है मौसम
सूख कर पीली पड़ चुकी घास
+
खुली हवायें बनाने लगती हैं कुछ दूरी
क्वार की युवा धूप में
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चंचल हो उठते हैं वृक्षों के पीले पत्ते
सिहरन भरी हवाओं का स्पर्श
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ढलते दिन की लम्बी परछाईयों में  
लुप्तप्राय घास से चहक उठी हैं
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ठहरे से आकाश में चुपचाप
उम्मीद की नन्हीं कोंपले
+
निकल आता है नीला चाँद
कार्तिक माह
+
इस बेरंग मौसम में  
भोर की निस्तब्ध बेला में
+
वृक्षों के नीचे पीले पत्तों की कालीन पर
ओस की नन्हीं मोतियों से कर श्रृंगार
+
फुदकती है एक चिड़िया
नन्हीं कोपलें चहक उठी हैं
+
चाँद के सर्द होने... पत्तों के टूटने से पूर्व
दूर-दूर तक विस्तृत धान के खेतों में  
+
मैं उतार लेती हूँ चाँद को जल भरे कटोरे में
लहलहा उठी हैं हरी बालियाँ
+
सूखे पत्तों के संगीत में
महक-महक उठा है हवाओं का वजूद
+
जीवंत होने लगा है सर्द चाँद।
कोहरे का झीना आवरण
+
असमर्थ हो रहा है सृश्टि के सौन्दर्य को ढँकने में
+
गुनगुनी धूप के संसर्ग से
+
सुनहरी होने लगी हैं धान की बालियाँ
+
पकने लगे हैं स्वप्न
+
धान की गाँछों भरे खलिहान
+
अगहन के सर्द दिनों मे
+
गरमाहट से भरने लगे हैं
+
नये चावल की भीनी महक से
+
लहक-महक उठी है गाँव की हवायें
+
धान के सुनहरे दानों से
+
भर गयी हैं डेहरियाँ
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स्वर्णिम नवगाछ की पुआल
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बन जायेंगी गर्म बिछौने
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पूस की ठंड रातों में / इन दिनों।
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10:01, 29 जून 2017 के समय का अवतरण

जब कभी उदास होता है मौसम
खुली हवायें बनाने लगती हैं कुछ दूरी
चंचल हो उठते हैं वृक्षों के पीले पत्ते
ढलते दिन की लम्बी परछाईयों में
ठहरे से आकाश में चुपचाप
निकल आता है नीला चाँद
इस बेरंग मौसम में
वृक्षों के नीचे पीले पत्तों की कालीन पर
फुदकती है एक चिड़िया
चाँद के सर्द होने... पत्तों के टूटने से पूर्व
मैं उतार लेती हूँ चाँद को जल भरे कटोरे में
सूखे पत्तों के संगीत में
जीवंत होने लगा है सर्द चाँद।