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"ज़िंदगी दो-चार पल बहला गये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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15:11, 19 अगस्त 2017 का अवतरण

ज़िंदगी दो-चार पल बहला गये।
हुस्न की ताक़त मुझे दिखला गये।

बढ़ गया जब इश्क का मेरे जुनूँ,
चाँदनी की धार में नहला गये।

प्यार के दो बोल मीठे बोलकर,
आइने-सी आँख को पिघला गये।

कब लगे वो अजनबी जैसे मुझे,
कब मेरे वो अंक में इठला गये।

कब खुशी से भर दिया मेरा हृदय,
कब कलेजा भी मेरा दहला गये।