भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मिट गये देश के जो सृजन के लिए / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=आईना-दर-आईना /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:12, 19 अगस्त 2017 का अवतरण
मिट गये देश के जो सृजन के लिए।
रह गये शेष हैं वो स्मरण के लिए।
काश, पुरखों के अरमान हम जानते,
ख़्वाब उनके थे क्या इस वतन के लिए।
फूल क्या जानते भूमि से पूछिये,
ख़ून कितना बहा इस चमन के लिए।
आपसी रंजिशें, साजिशें बढ़ गयीं,
खोखले हो गये लोग धन के लिए।
लेाग स्वाधीन हैं या कि स्वच्छंद हैं,
सभ्यता रो रही आचरण के लिए।
कौन दिल से किसे मानने कब चला,
सब दिखावा है लाभार्जन के लिए।
सिर्फ आदर्श जलसों तलक ही न हों,
ज़िंदगी में वो हों अनुकरण के लिए।