भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दर्द में डूबा हुआ कोई ख़जाना तो हो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=आईना-दर-आईना /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

15:22, 19 अगस्त 2017 का अवतरण

दर्द में डूबा हुआ कोई ख़जाना तो हो।
गीत गाने के लिए कोई बहाना तो हो।

चंद लम्हों की मुलाकात के बहाने ही,
ज़िंदगी में चलो इक गुज़रा ज़माना तो हो।

देवता बन के निकल जाऊँ न मैं दुनिया से,
चलो बदनाम सही मेरा फसाना तो हो।

कुछ माटी में, कुछ हवा में बिखर जायेगा,
आपके वास्ते पर मेरा तराना तो हो।

जुल्म मैंने सहा महफू़ज रहो तुम जिससे,
मैं रहूँ या न रहूँ तुमको ठिकाना तो हो।