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"माना इक सुंदर शहर यहाँ / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | माना इक सुंदर शहर | + | माना इक सुंदर शहर यहाँ |
पत्थर ही पत्थर मगर यहाँ। | पत्थर ही पत्थर मगर यहाँ। | ||
− | जो निगल रहा है गाँवों को | + | जो निगल रहा है गाँवों को |
बैठा वो असुर है किधर यहाँ। | बैठा वो असुर है किधर यहाँ। | ||
− | छमिया भट्ठे की मजदूरन | + | छमिया भट्ठे की मजदूरन |
कोठे तक की है सफ़र यहाँ। | कोठे तक की है सफ़र यहाँ। | ||
− | मँहगू ठेले में नधा रहा | + | मँहगू ठेले में नधा रहा |
फाँके पर करके गुज़र यहाँ। | फाँके पर करके गुज़र यहाँ। | ||
− | खाने-पीने की चीज़ों में | + | खाने-पीने की चीज़ों में |
भी, कितना घुला है ज़हर यहाँ। | भी, कितना घुला है ज़हर यहाँ। | ||
− | हर तरफ मशीनें दिखती हैं | + | हर तरफ मशीनें दिखती हैं |
इन्सान न आता नजर यहाँ। | इन्सान न आता नजर यहाँ। | ||
− | रूपया-पैसा मिल जाता है | + | रूपया-पैसा मिल जाता है |
चैन न मिलता मगर यहाँ। | चैन न मिलता मगर यहाँ। | ||
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16:33, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
माना इक सुंदर शहर यहाँ
पत्थर ही पत्थर मगर यहाँ।
जो निगल रहा है गाँवों को
बैठा वो असुर है किधर यहाँ।
छमिया भट्ठे की मजदूरन
कोठे तक की है सफ़र यहाँ।
मँहगू ठेले में नधा रहा
फाँके पर करके गुज़र यहाँ।
खाने-पीने की चीज़ों में
भी, कितना घुला है ज़हर यहाँ।
हर तरफ मशीनें दिखती हैं
इन्सान न आता नजर यहाँ।
रूपया-पैसा मिल जाता है
चैन न मिलता मगर यहाँ।