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"मिट गये देश के जो सृजन के लिए / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | मिट गये देश के जो सृजन के | + | मिट गये देश के जो सृजन के लिए |
रह गये शेष हैं वो स्मरण के लिए। | रह गये शेष हैं वो स्मरण के लिए। | ||
− | काश, पुरखों के अरमान हम जानते | + | काश, पुरखों के अरमान हम जानते |
ख़्वाब उनके थे क्या इस वतन के लिए। | ख़्वाब उनके थे क्या इस वतन के लिए। | ||
− | फूल क्या जानते भूमि से पूछिये | + | फूल क्या जानते भूमि से पूछिये |
ख़ून कितना बहा इस चमन के लिए। | ख़ून कितना बहा इस चमन के लिए। | ||
− | आपसी रंजिशें, साजिशें बढ़ गयीं | + | आपसी रंजिशें, साजिशें बढ़ गयीं |
खोखले हो गये लोग धन के लिए। | खोखले हो गये लोग धन के लिए। | ||
− | लेाग स्वाधीन हैं या कि स्वच्छंद हैं | + | लेाग स्वाधीन हैं या कि स्वच्छंद हैं |
सभ्यता रो रही आचरण के लिए। | सभ्यता रो रही आचरण के लिए। | ||
− | कौन दिल से किसे मानने कब चला | + | कौन दिल से किसे मानने कब चला |
सब दिखावा है लाभार्जन के लिए। | सब दिखावा है लाभार्जन के लिए। | ||
− | सिर्फ आदर्श जलसों तलक ही न हों | + | सिर्फ आदर्श जलसों तलक ही न हों |
ज़िंदगी में वो हों अनुकरण के लिए। | ज़िंदगी में वो हों अनुकरण के लिए। | ||
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17:00, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
मिट गये देश के जो सृजन के लिए
रह गये शेष हैं वो स्मरण के लिए।
काश, पुरखों के अरमान हम जानते
ख़्वाब उनके थे क्या इस वतन के लिए।
फूल क्या जानते भूमि से पूछिये
ख़ून कितना बहा इस चमन के लिए।
आपसी रंजिशें, साजिशें बढ़ गयीं
खोखले हो गये लोग धन के लिए।
लेाग स्वाधीन हैं या कि स्वच्छंद हैं
सभ्यता रो रही आचरण के लिए।
कौन दिल से किसे मानने कब चला
सब दिखावा है लाभार्जन के लिए।
सिर्फ आदर्श जलसों तलक ही न हों
ज़िंदगी में वो हों अनुकरण के लिए।