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"हमने गर आसमाँ उठाया है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जगहें सबके लिए बनाया है।
 
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सूर्इ्र ने कब कहाँ सिलाई की,
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धागे को रास्ता दिखाया है।
 
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कोई तालाब बन गया होगा,
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कोठी ऊँची अगर उठाया है।
 
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बेसुध हो लोग सो गये जब-जब,
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हमने आवाज़ दे जगाया है।
 
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17:01, 23 अगस्त 2017 का अवतरण

हमने गर आसमाँ उठाया है
जगहें सबके लिए बनाया है।

सूर्इ्र ने कब कहाँ सिलाई की
धागे को रास्ता दिखाया है।

कोई तालाब बन गया होगा
कोठी ऊँची अगर उठाया है।
 
आँखें रखने का है गिला हमको
अंधों ने आइना दिखाया है।

बेसुध हो लोग सो गये जब-जब
हमने आवाज़ दे जगाया है।