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"तुम इतने खूसूरत हो कि बरबस आँख टिक जाये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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तुम इतने खूसूरत हो कि बरबस आँख टिक जाये।
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तुम इतने खूसूरत हो कि बरबस आँख टिक जाये
 
बहुत लिक्खे मगर कोई ग़ज़ल तुम-सी न लिख पाये।
 
बहुत लिक्खे मगर कोई ग़ज़ल तुम-सी न लिख पाये।
  
अजब-सी हैं खुली जुल्फें, गजब-सा है खिला चेहरा,
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अजब-सी हैं खुली जुल्फें, गजब-सा है खिला चेहरा
 
उजाले और भी दिलकश अँधेरे में नज़र आयें।
 
उजाले और भी दिलकश अँधेरे में नज़र आयें।
  
ये आँखों की पुतलियाँ और वो होठों की पंखुड़ियाँ,
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ये आँखों की पुतलियाँ और वो होठों की पंखुड़ियाँ
 
नज़र भरकर इन्हें बस देख लो तो आग लग जाये।
 
नज़र भरकर इन्हें बस देख लो तो आग लग जाये।
  
फलों पे हो कड़ा पहरा, लगे फूलों पे पाबन्दी,
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फलों पे हो कड़ा पहरा, लगे फूलों पे पाबन्दी
 
मगर सबके लिए होते दरख़्तो के हसीं साये।
 
मगर सबके लिए होते दरख़्तो के हसीं साये।
  
किसी प्यासे से ये पूछो कि कितनी चोट लगती है,
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किसी प्यासे से ये पूछो कि कितनी चोट लगती है
 
बिना बरसे कोई बादल अगर यूँ ही निकल जाये।
 
बिना बरसे कोई बादल अगर यूँ ही निकल जाये।
 
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17:04, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

तुम इतने खूसूरत हो कि बरबस आँख टिक जाये
बहुत लिक्खे मगर कोई ग़ज़ल तुम-सी न लिख पाये।

अजब-सी हैं खुली जुल्फें, गजब-सा है खिला चेहरा
उजाले और भी दिलकश अँधेरे में नज़र आयें।

ये आँखों की पुतलियाँ और वो होठों की पंखुड़ियाँ
नज़र भरकर इन्हें बस देख लो तो आग लग जाये।

फलों पे हो कड़ा पहरा, लगे फूलों पे पाबन्दी
मगर सबके लिए होते दरख़्तो के हसीं साये।

किसी प्यासे से ये पूछो कि कितनी चोट लगती है
बिना बरसे कोई बादल अगर यूँ ही निकल जाये।