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"वरना नहीं भी करूँगी / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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14:09, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

मैं हर पल भीतर-भीतर रोती हूँ
माटी का कण-कण आँसुओं से भिगोती हूँ
पर तुमसे पूछ नहीं सकती
कि तुमने ऐसा क्यों किया मेरे साथ

तुम जान भी रहे हो
मेरी पीड़ा मेरे दु:ख-दर्द की हक़ीकत को
पर अनजान बने हो
और मैं पूछ नहीं सकती
क्योंकि पूछते ही तुम बेताल की तरह
चले जाओगे

तुम्हें भूलना जीते जी मरने जैसा है मेरे लिए
तेल के खौलते कड़ाह में खुद को डालना है
तुम मेरी ज़िन्दगी में नहीं हो
इस सोच के साथ ही लगने लगता है
कोई मेरे शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर रहा है
घोंप रहा है चाकू कोई मेरे सीने में
एक दिन मैंने कहा- 'मुझसे बात करो’
तुमने कहा- 'अभी काम का वक्त है
अपन ने तय किया था काम के वक्त काम
बात के वक्त बात’
मैं चुप हो गयी
बात के वक्त मैंने कहा 'बात करो
तुमने कहा 'की न अभी कुछ देर पहले बात’
मैंने कहा 'वो तो तुमने कहा कि अभी बात नहीं करना’
तुमने तेज़ी से कहा 'हाँ, तो ठीक कहा न’

हाँ, तुम सदा ठीक ही बोले
तुमने ठीक ही किया
तुम सदा ठीक ही चले
कि जिसकी बदौलत आज तक चल रहे हो
मैं तो कब की ठहर चुकी हूँ तुम्हारे आसपास
पर जाने तुम हो किस के पास

मैं देख रही हूँ तुम कुछ देख ही नहीं रहे हो
तुम अपने पास भी नहीं हो कब से
यकीन है जिस दिन अपने पास होओगे
उस दिन ही मेरे पास भी हो जाओगे

लेकिन एक समय बाद
मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी ही, यह ज़रूरी तो नहीं
पर अभी तो अपने आँसुओं को आँखों के कटोरों में भरकर
पी रही हूँ
फिर भी एक प्यास के साथ, किसी तरह जी रही हूँ

पर अब जब तुम चले गए हो (पास रहकर भी पास कहाँ हो)
मैं हमारे अतीत में चली गयी हूँ
कितने दृश्य कितनी बातें
कितने दिन कितनी रातें
कितने आँसू कितनी हँसी
कितने उलाहने कितना मान मनौवल
सब याद आते हैं

तुम और तुम्हारे किस्से
इस ज़िन्दगी में यही सब है मेरे हिस्से