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"याद / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर

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रोशनी की एक खिड़की खोली
 
रोशनी की एक खिड़की खोली
 
बादल की एक खिड़की बंद की
 
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया….
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आसमान की भवों पर
 
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जाने क्यों पसीना आ गया
 
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सितारों के बटन खोल कर
 
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया….
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उसने चांद का कुर्ता उतार दिया…
  
 
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
 
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तुम्हारी याद इस तरह आयी
 
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जैसे गीली लकड़ी में से
 
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गहरा और काला धूंआ उठता है….
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साथ हजारों ख्याल आये
 
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कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
 
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वक्त का हाथ जब समेटने लगा
 
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पोरों पर छाले पड़ गये….
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तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
 
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और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
 
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इतिहास का मेहमान
 
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मेरे चौके से भूखा उठ गया….
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07:46, 1 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

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»  याद

आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया…

आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया…

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है…

साथ हजारों ख्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं

वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये…

तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया…