भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मिट्टी के लोग / आरती तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman ने मिट्टी के लोग / आरती वर्मा पृष्ठ मिट्टी के लोग / आरती तिवारी पर स्थानांतरित किया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:21, 15 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
वे जन्मे थे इसी मिट्टी के सौंधेपन से
इसी में घिसटे और चले
घुटैंया घुटैयां
मटकों का पानी पीकर
हुए तृप्त उनके बचपन के खेल
इसी के बने घुल्ले दौड़ाये
पोला के हाट में
इसी के कल्ले पे बनी रोटी का स्वाद
भिगाता रहा मसें
खिलता रहा केशौर्य
याद करके इसी माटी के घरघूले
और बरखा की पहली बूंदों को
छककर सांसो में भरते भरते
बौराने लगा यौवन
उनीदी आँखों में समाने लगे
मौलश्री के ताजे टटके फूल
माटी के चबूतरे पे बैठ
निहारीं कितनी पनिहारिने
और इसी माटी में गुम हो गए
जाने कितने कुंआरे सपने
और ऐसे ही जीते जीते एक दिन बिला जायेंगे
हम लोग भी मिट्टी में
पर बची रहेगी यह कविता
जिसमें गंध है विचार की.
जिसमें प्यार है मित्रों का
जिसमें मिट्टी का ही ज़िक्र है