भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम बहुत कायल हुए हैं / मनोज जैन 'मधुर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर' |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
हम बहुत कायल हुए हैं
 
हम बहुत कायल हुए हैं
 
आपके व्यवहार के।
 
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने दिखाये
+
आँख को सपने दिखाए
 
प्यास को पानी ।
 
प्यास को पानी ।
 
इस तरह होती रही  
 
इस तरह होती रही  
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
शब्द भर टपका दिए दो  
 
शब्द भर टपका दिए दो  
 
होंठ से आभार के।
 
होंठ से आभार के।
******
+
 
 
लाज को घूँघट दिखाया  
 
लाज को घूँघट दिखाया  
 
पेट को थाली।
 
पेट को थाली।
 
आप तो भरते रहे पर  
 
आप तो भरते रहे पर  
हम हुए खाली।
+
हम हुए ख़ाली।
 
पीठ पर कब तक सहें
 
पीठ पर कब तक सहें
 
चाबुक समय की मार के।
 
चाबुक समय की मार के।
*****
+
 
 
पाँव को बाधा दिखाई  
 
पाँव को बाधा दिखाई  
 
हाथ को डण्डे।
 
हाथ को डण्डे।
 
दे दिए बैनर किसी ने  
 
दे दिए बैनर किसी ने  
दे दिए झन्डे।
+
दे दिए झण्डे।
 
हो सके कब जीत के हम  
 
हो सके कब जीत के हम  
 
हो सके कब हार के।
 
हो सके कब हार के।
 
</poem>
 
</poem>

01:40, 5 दिसम्बर 2017 का अवतरण

हम बहुत कायल हुए हैं
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने दिखाए
प्यास को पानी ।
इस तरह होती रही
हर रोज़ मनमानी।
शब्द भर टपका दिए दो
होंठ से आभार के।

लाज को घूँघट दिखाया
पेट को थाली।
आप तो भरते रहे पर
हम हुए ख़ाली।
पीठ पर कब तक सहें
चाबुक समय की मार के।

पाँव को बाधा दिखाई
हाथ को डण्डे।
दे दिए बैनर किसी ने
दे दिए झण्डे।
हो सके कब जीत के हम
हो सके कब हार के।