भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ / भाग २१ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मुनव्वर राना |संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}} {{KKPageNavigation |पीछे=म...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}}
 
|संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}}
 
{{KKPageNavigation
 
{{KKPageNavigation
|पीछे=माँ / भाग १० / मुनव्वर राना
+
|पीछे=माँ / भाग २० / मुनव्वर राना
|आगे=माँ / भाग १२ / मुनव्वर राना
+
|आगे=माँ / भाग २२ / मुनव्वर राना
 
|सारणी=माँ / मुनव्वर राना
 
|सारणी=माँ / मुनव्वर राना
 
}}
 
}}

21:17, 11 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

मैं इतनी बेबसी में क़ैद—ए—दुश्मन में नहीं मरता

अगर मेरा भी इक भाई लड़कपन में नहीं मरता


काँटों से बच गया था मगर फूल चुभ गया

मेरे बदन में भाई का त्रिशूल चुभ गया


ऐ ख़ुदा थोड़ी करम फ़रमाई होना चाहिए

इतनी बहनें हैं तो फिर इक भाई होना चाहिए


बाप की दौलत से यूँ दोनों ने हिस्सा ले लिया

भाई ने दस्तार ले ली मैंने जूता ले लिया


निहत्था देख कर मुझको लड़ाई करता है

जो काम उसने किया है वो भाई करता है


यही था घर जहाँ मिलजुल के सब इक साथ रहते थे

यही है घर अलग भाई की अफ़्तारी निकलती है


वह अपने घर में रौशन सारी शमएँ गिनता रहता है

अकेला भाई ख़ामोशी से बहनें गिनता रहता है


मैं अपने भाइयों के साथ जब बाहर निकलता हूँ

मुझे यूसुफ़ के जानी दुश्मनों की याद आती है


मेरे भाई वहाँ पानी से रोज़ा खोलते होंगे

हटा लो सामने से मुझसे अफ़्तारी नहीं होगी


जहाँ पर गिन के रोटी भाइयों को भाई देते हों

सभी चीज़ें वहाँ देखीं मगर बरकत नहीं देखी