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"प्यार जब मरता है / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर
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प्यार जब मरता है
तो मृत्यु से भी सघन मरता है
क्योंकि किसी दूसरे जन्म में
फिर जीवित होने के लिए नहीं मरता,
बस मरता है
यह प्रचंड सन्ताप,
यह खालीपन,
यह दुर्भिक्ष के दिन जैसा मन,
यदि हैं तो ठीक ही हैं-
मरना किसी का भी हो
कुछ तो दुखी करता है
