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"सजनि, ऋतु मादिनी / रामइकबाल सिंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर

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भैरवी त्रिताल
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वागीश्वरी: झपताल
  
गगन में अरुण पराग भरे,
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सजनि, ऋतु मादिनी;
छवि के दल छवि के सरसिज से खिल-खुल कर बिखरे;
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मन्धमधुदानिनी मधुरपिकानादिनी।
  
जवार जागर के अन्तर्मन-सर में उमड़ पड़े
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मलय-चदन-सुरभि-स्नात दक्षिण पवन,
रंगों के संगीत नींद की पलकों पर उतरे;
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कंुज-कानन मगन, नाद-नन्दित गगन,
गगन में अरुण पराग भरे।
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सांगरागा धरा नयन अभिरामिनी।
  
कुम्हलाए निशि की वेणी में तारों के गजरे,
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लुब्ध मधु-मकरन्द मुखर मधुकर-निकर,
पाते सुमन पवन के चुम्बन, सजन सेज तज रे;
+
राग-स्वर-शर-विद्ध-निमिष-लव-पल-पहर,
गगन में अरुण पराग भरे।
+
फुल्लमुकुलित लता कनकवर्णांगिनी।
  
(20 फरवरी, 1974)
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अरुण म´््िजष्ठ द्रुम-शिखर किसलय-ज्वलित,
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शोकदीपन विरह-विषम-ज्वरतप्तकृत,
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कुसुमज्वालाशिखा दुसहदुखदायिनी।
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(15 मार्च, 1974)
 
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15:52, 18 मई 2018 के समय का अवतरण

वागीश्वरी: झपताल

सजनि, ऋतु मादिनी;
मन्धमधुदानिनी मधुरपिकानादिनी।

मलय-चदन-सुरभि-स्नात दक्षिण पवन,
कंुज-कानन मगन, नाद-नन्दित गगन,
सांगरागा धरा नयन अभिरामिनी।

लुब्ध मधु-मकरन्द मुखर मधुकर-निकर,
राग-स्वर-शर-विद्ध-निमिष-लव-पल-पहर,
फुल्लमुकुलित लता कनकवर्णांगिनी।

अरुण म´््िजष्ठ द्रुम-शिखर किसलय-ज्वलित,
शोकदीपन विरह-विषम-ज्वरतप्तकृत,
कुसुमज्वालाशिखा दुसहदुखदायिनी।

(15 मार्च, 1974)