भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बन में वह नंद नंदन बंसी बजा रहा है / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatNazm}} | {{KKCatNazm}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | बन में वह नंद नंदन बंसी बजा रहा है। | |
− | + | मन में व्यथा मदन की मेरे जगा रहा है॥ | |
− | + | जब से मनोज मोहन मन में समा रहा है। | |
− | + | जिस ओर देखती हूँ वह मुसकुरा रहा है॥ | |
− | + | भौंहें मरोड़ कर मन मेरा मरोड़ता है। | |
− | + | नैनों की सैन से बस बेबस बना रहा है॥ | |
− | + | सिर मोर मुकुट सोहै कटि पीत पट बिराजै। | |
− | + | गुंजावतंस हिय में बनमाल भा रहा है॥ | |
− | + | कैसे करूँ सखी अब कलसे नहीं कल आती। | |
− | + | मन मोह कर वह मोहन मुझको भुला रहा है॥11॥ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
18:38, 20 मई 2018 का अवतरण
बन में वह नंद नंदन बंसी बजा रहा है।
मन में व्यथा मदन की मेरे जगा रहा है॥
जब से मनोज मोहन मन में समा रहा है।
जिस ओर देखती हूँ वह मुसकुरा रहा है॥
भौंहें मरोड़ कर मन मेरा मरोड़ता है।
नैनों की सैन से बस बेबस बना रहा है॥
सिर मोर मुकुट सोहै कटि पीत पट बिराजै।
गुंजावतंस हिय में बनमाल भा रहा है॥
कैसे करूँ सखी अब कलसे नहीं कल आती।
मन मोह कर वह मोहन मुझको भुला रहा है॥11॥