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"हाथी दादा / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर

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बंदर ने यूँ धमकाया-
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सूँड़ घूमाते, कान हिलाते,  
‘ओ बेवकूफ बंदरिया,  
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मस्त झूमते हुए चलें।
समझ रही तू खुद को हेमा
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जहाँ दिखे गन्ना, लेने को-  
या डिम्पल कापड़िया?
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हाथी दादा झट मचलें।
अब तक नखरे बहुत सहे
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      [हिंदुस्तान, 28 जुलाई 1996]
पर अब मैं नहीं सहूँगा,  
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तुझे छोड़, श्रीदेवी या
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जूही से ब्याह करूँगा’।
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कहा घुड़ककर बंदरिया ने-
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‘ओ हीरो के बाप!
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पहले अपनी शक्ल देख ले
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शीशे में चुपचाप’।
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[स्वतंत्र भारत (उपहार), 9 जुलाई 1992]
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13:17, 22 मई 2018 के समय का अवतरण

सूँड़ घूमाते, कान हिलाते,
मस्त झूमते हुए चलें।
जहाँ दिखे गन्ना, लेने को-
हाथी दादा झट मचलें।
       [हिंदुस्तान, 28 जुलाई 1996]