भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चिंता / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यंत कुमार |चिंता / दुष्यंत कु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
कि यह रास्ता सीधा उस गहरी सुरंग से निकलता है
 
कि यह रास्ता सीधा उस गहरी सुरंग से निकलता है
 
जिसमें से होकर कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं
 
जिसमें से होकर कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं
बेबस ! असहाय !!
+
बेबस! असहाय!!
 
क्या मेरे सामने विकल्प नहीं है कोई
 
क्या मेरे सामने विकल्प नहीं है कोई
 
इसके सिवाय !
 
इसके सिवाय !
 
आजकल मैं सोचता हूँ...!
 
आजकल मैं सोचता हूँ...!
 +
</poem>

16:33, 30 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

आजकल मैं सोचता हूँ साँपों से बचने के उपाय
रात और दिन
खाए जाती है यही हाय-हाय
कि यह रास्ता सीधा उस गहरी सुरंग से निकलता है
जिसमें से होकर कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं
बेबस! असहाय!!
क्या मेरे सामने विकल्प नहीं है कोई
इसके सिवाय !
आजकल मैं सोचता हूँ...!