भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोई न जान सका वो कहाँ से आया था / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<poem> | <poem> | ||
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था | कोई न जान सका वो कहाँ से आया था | ||
− | और उसने | + | और उसने धूूप से बादल को क्यों मिलाया था |
यह बात लोगों को शायद पसंद आयी नहीं | यह बात लोगों को शायद पसंद आयी नहीं |
09:18, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था
और उसने धूूप से बादल को क्यों मिलाया था
यह बात लोगों को शायद पसंद आयी नहीं
मकान छोटा था लेकिन बहुत सजाया था
वो अब वहाँ हैं जहाँ रास्ते नहीं जाते
मैं जिसके साथ यहाँ पिछले साल आया था
सुना है उस पे चहकने लगे परिंदे भी
वो एक पौधा जो हमने कभी लगाया था
चिराग़ डूब गए कपकपाये होंठों पर
किसी का हाथ हमारे लबों तक आया था
तमाम उम्र मेरा दम इसी धुएं में घुटा
वो एक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया था