भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिलों के शहर में यह हादसा हुआ कैसे / मेहर गेरा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेहर गेरा |अनुवादक= |संग्रह=लम्हो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:57, 29 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

 
दिलों के शहर में यह हादसा हुआ कैसे
हमारे ज़ेहन से वो नक़्श मिट गया कैसे

हरेक शाख़ ही तूफां-नवाज़ थी जिसकी
वो पेड़ लम्से-सबा से ही गिर गया कैसे

हरेक रंग जिसे ज़िन्दगी का प्यार था
वो शख्स ग़म के समंदर में डूबता कैसे

मैं पत्थरों की ज़ियारत को मेहर क्यों जाऊं
जो खुद -निगर न हों उंमो कहूँ ख़ुदा कैसे।