भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उठ रही फिर भावना की इक लहर है / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=इज़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:56, 29 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

 
उठ रही फिर भावना की इक लहर है
फिर क़लम तय कर रही अदबी सफर है

सामने आ बैठे जब से आप मेरे
रंग ख़ुशियों का मेरे कैन्वास पर है

बेसहारा छोड़ कर माँ-बाप को क्यों
बस गया परदेस में लख्ते जिगर है

दूर जिससे एक पल रहना था दूभर
एक अर्से से नहीं उसकी खबर है

इस से बढ़ कर और क्या सम्मान होगा
तालियों की गूंज मेरा ऑस्कर है

चढ़ गया ‘अज्ञात' चश्मा फिर भी मेरी
आज के हालात पर पैनी नज़र है