भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अभी उठ के जाने का जी तो नहीं है / अनु जसरोटिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनु जसरोटिया |अनुवादक= |संग्रह=ख़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:39, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

अभी उठ के जाने का जी तो नहीं है
तबीयत हमारी भरी तो नहीं है

किसी बात पर दिल धड़कता नहीं अब
महब्बत में कोई कमी तो नहीं है

किसी दिन करम की हो मुझ पर भी बारिश
तेरे घर में कोई कमी तो नहीं है

मशक़्क़्त करो दौलते-इल्म पाओ
ये दौलत कहीं भी गढ़ी तो नहीं है

जो कानों में रस घोलती है हमारे
कन्हैया की ये बांसुरी तो नहीं है

नई चाल चलते हो हर रोज़ हम से
सियासत है ये दोस्ती तो नहीं है

उजाड़ी गई थी जो महलों की ख़ातिर
वो बस्ती कभी फिर बसी तो नहीं है