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"मुक्ति की आकांक्षा / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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बाहर बहेलिए का डर है, | बाहर बहेलिए का डर है, | ||
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फिर भी चिडि़या | फिर भी चिडि़या | ||
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मुक्ति का गाना गाएगी, | मुक्ति का गाना गाएगी, | ||
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मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी, | मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी, | ||
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पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी, | पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी, | ||
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हरसूँ ज़ोर लगाएगी | हरसूँ ज़ोर लगाएगी | ||
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और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी। | और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी। |
18:35, 3 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
चिडि़या को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहाँ हवा में उन्हें
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिडि़या
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।