भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक पहाड़ी यात्रा / कुमार विकल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= एक छोटी-सी लड़ाई / कुमार विकल }} बहुत ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:46, 2 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
अपने शरीर से घटिया शराब की दुर्गंध
जिससे उड़ गये हैं मेरे डर
तुच्छताएँ, कमीनापन.
चट्टान से फूटा है झरना
बह गया मेरा अकेलापन.
सुरमई आकाश के नीचे
कौन है अकेला
कौन है निस्संग.
जब तक बहता है झरना
और मँडराती है
मेरे जिस्म के आसपास
एक पहाड़ी क़स्बे की गंध
मैं नहीं अकेला
मैं नहीं निस्संग.
शहर को लौटूँगा तो
ले जाऊँगा
पलको के बटुओं में सुरमई आकाश
थर्मस में झरनों का जल
और जिस्म में एक पहाड़ी क़स्बे की गंध.