भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यह कवि अपराजेय निराला / रामविलास शर्मा-२" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामविलास शर्मा-२ |संग्रह= }} <Poem> यह कवि अपराजेय नि...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | < | + | <poem> |
यह कवि अपराजेय निराला, | यह कवि अपराजेय निराला, | ||
जिसको मिला गरल का प्याला, | जिसको मिला गरल का प्याला, | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
यह अपने भविष्य की आशा- | यह अपने भविष्य की आशा- | ||
'माँ अपने आलोक निखारो, | 'माँ अपने आलोक निखारो, | ||
− | नर को नरक -त्रास से वारो !' | + | नर को नरक-त्रास से वारो !' |
− | भारत के | + | भारत के इस रामराज्य पर, |
− | हे कवि | + | हे कवि तुम साक्षात व्यंग्य-शर ! |
</poem> | </poem> |
15:11, 9 अगस्त 2019 के समय का अवतरण
यह कवि अपराजेय निराला,
जिसको मिला गरल का प्याला,
ढहा और तन टूट चुका है
पर जिसका माथा न झुका है,
नीली नसें खिंची हैं कैसी
मानचित्र में नदियाँ जैसी,
शिथिल त्वचा,ढल-ढल है छाती,
लेकिन अभी संभाले थाती,
और उठाए विजय पताका
यह कवि है अपनी जनता का !
स्वर्ण रेख-सी उसकी रचना,
काल-निकष पर अमर अर्चना !
एक भाग्य की और पराजय,
एक और हिंदी जन की जय,
परदुखकातर कवि की भाषा,
यह अपने भविष्य की आशा-
'माँ अपने आलोक निखारो,
नर को नरक-त्रास से वारो !'
भारत के इस रामराज्य पर,
हे कवि तुम साक्षात व्यंग्य-शर !