"मुझको इस आग से बचाओ मेरे दोस्तों-1 / रमाशंकर यादव 'विद्रोही'" के अवतरणों में अंतर
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमाशंकर यादव 'विद्रोही' |अनुवादक= ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | मैं | + | मैं साइमन |
+ | न्याय के कटघरे में खड़ा हूं | ||
प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दें | प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दें | ||
− | मैं | + | मैं वहां से बोल रहा हूं |
− | + | जहां मोहनजोदाड़ो के तालाब की आखिरी सीढ़ी है | |
− | + | ||
− | + | ||
− | इसी तरह | + | जिस पर एक औरत की जली हुई |
− | + | लाश पड़ी है | |
− | और इंसानों की बिखरी हुई | + | और तालाब में इंसानों की हड्डियां |
+ | बिखरी पड़ी हैं | ||
+ | इसी तरह एक औरत जली हुई लाश | ||
+ | आपको बेबिलोनियां में भी मिल जाएगी | ||
+ | और इसी तरह इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां | ||
+ | मेसोपोटामियां में भी | ||
− | मैं सोचता | + | मैं सोचता हूं |
− | + | और बारहा सोचता हूं | |
− | प्राचीन सभ्यताओं के मुहाने पर | + | कि आखिर क्या बात है |
− | एक औरत की जली हुई लाश मिलती है | + | कि प्राचीन सभ्यताओं |
− | इंसानों की बिखरी हुई | + | के मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश मिलती है |
− | + | और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां मिलती हैं | |
− | बंगाल के मैदानों तक | + | जिनका सिलसिला |
− | और | + | सीथिया के चट्टानों से लेकर |
− | + | बंगाल के मैदानों तक | |
− | </poem> | + | और सवाना के जंगलों से लेकर |
+ | कान्हा के वनों तक चलता जाता है | ||
+ | |||
+ | एक औरत जो मां हो सकती है | ||
+ | बहिन हो सकती है | ||
+ | बीबी हो सकती है | ||
+ | बेटी हो सकती है | ||
+ | मैं कहता हूं | ||
+ | तुम हट जाओ मेरे सामने से | ||
+ | मेरा खून कलकला रहा है | ||
+ | मेरा कलेजा सुलग रहा है | ||
+ | मेरी देह जल रही है | ||
+ | मेरी मां को, मेरी बहिन को, मेरी बीबी को | ||
+ | मेरी बेटी को | ||
+ | मारा गया है | ||
+ | मेरी पुरख़िनें | ||
+ | आसमान में आर्तनाद कर रही हैं | ||
+ | |||
+ | मैं इस औरत की जली हुई लाश पर | ||
+ | सर पटक कर जान दे देता | ||
+ | अगर मेरे एक बेटी ना होती दोस्तों ! | ||
+ | और बेटी है जो कहती है | ||
+ | कि पापा तुम बेवजह ही | ||
+ | हम लड़कियों के बारे में | ||
+ | इतने भावुक होते हो | ||
+ | हम लड़कियां तो लकड़ियां होती हैं | ||
+ | जो बड़ी होने पर चूल्हे में लगा दी जाती हैं | ||
+ | |||
+ | ...ये इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां | ||
+ | रोमन गुलामों की भी हो सकती हैं दोस्तों ! | ||
+ | और बंगाल के जुलाहों की भी | ||
+ | या अति आधुनिक | ||
+ | वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की | ||
+ | साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है | ||
+ | चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो | ||
+ | या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य | ||
+ | जिसका एक ही काम होता है कि | ||
+ | पहाड़ों पर, पठारों पर, नदी किनारे | ||
+ | सागर तीरे, मैदानों में | ||
+ | इंसानों की हड्डियाँ बिखेर दें | ||
+ | जो इतिहास को तीन वाक्यों में | ||
+ | पेश करने का दावा करता है | ||
+ | कि हमने धरती पर सोले | ||
+ | भड़का दिए | ||
+ | कि हमने धरती में सरारे भर दिए | ||
+ | कि हमने धरती पर इंसानों की | ||
+ | हड्डियां बिखेर दीं | ||
+ | लेकिन मैं | ||
+ | स्पार्टकस का वंशज | ||
+ | स्पार्टकस की प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूं | ||
+ | कि जाओ ! | ||
+ | कह दो सीनेट से | ||
+ | कि हम सारी दुनिया के गुलामों को | ||
+ | इकठ्ठा करेंगे | ||
+ | और एक दिन रोम आयेंगे ज़रूर | ||
+ | लेकिन हम कहीं नहीं जायेंगे | ||
+ | क्योंकि ठीक इसी समय | ||
+ | जब मैं | ||
+ | यह कविता आपको सुना रहा हूं | ||
+ | लातिन अमरीकी मजदूर | ||
+ | महान साम्राज्य के लिए | ||
+ | कब्र खोद रहा है | ||
+ | और भारतीय मजदूर | ||
+ | उसके पालतू चूहे के बिलों में | ||
+ | पानी भर रहा है | ||
+ | एशिया से लेकर अफ्रीका तक | ||
+ | घृणा की जो आग लगी है | ||
+ | वो आग बुझ नहीं सकती है दोस्तों ! | ||
+ | क्योंकि | ||
+ | वो आग, एक औरत की जली हुई लाश की आग है | ||
+ | वह आग इंसानों की बिखरी हुई हड्डियों की आग है | ||
+ | |||
+ | इतिहास में पहली स्त्री हत्या | ||
+ | उसके बेटे अपने बाप के कहने पर की | ||
+ | जमदग्नि ने कहा- | ||
+ | वो परशुराम ! | ||
+ | मैं तुमसे कहता हूं कि अपनी मां का वध कर दो | ||
+ | और परशुराम ने कर दिया | ||
+ | इस तरह पुत्र, पिता का हुआ और पितृसत्ता आई | ||
+ | पिता ने अपने पुत्रों को मारा | ||
+ | जाह्नवी ने अपनी पति से कहा | ||
+ | कि मैं तुमसे कहती हूं | ||
+ | कि मेरी संतानों को मुझमें डुबो दो | ||
+ | और राजा शांतनु ने अपनी संतानों को | ||
+ | गंगा में डुबो दिया | ||
+ | लेकिन शांतनु जाह्नवी का नहीं हुआ | ||
+ | क्योंकि राजा किसी का नहीं होता | ||
+ | लक्ष्मी किसी की नहीं होती | ||
+ | धर्म किसी का नहीं होता | ||
+ | लेकिन सब राजा के होते हैं | ||
+ | गाय भी, गंगा भी, गीता भी, गायत्री भी | ||
+ | और ईश्वर तो खैर राजा के घोड़ों को घास ही छीलता रहा | ||
+ | बड़ा नेक था बेचारा | ||
+ | राजा का स्वामिभक्त | ||
+ | पर अफसोस है कि अब नहीं रहा | ||
+ | बहुत दिन हुए मर गया | ||
+ | |||
+ | ...और जब मरा तो राजा ने उसे खफ़न भी नहीं दिया | ||
+ | दफ़न के लिए दो ग़ज़ ज़मीन भी नहीं दी | ||
+ | किसी को नहीं पता है कि ईश्वर को | ||
+ | कहां दफ़नाया गया | ||
+ | |||
+ | ईश्वर मरा अंततोगत्वा | ||
+ | और | ||
+ | उसका मरना ऐतिहासिक सिद्ध हुआ | ||
+ | ऐसा इतिहासकारों का मत है | ||
+ | इतिहासकारों का मत यह भी है कि | ||
+ | राजा भी मरा, उसकी रानी भी मरी | ||
+ | और उसका बेटा भी मर गया | ||
+ | राजा लड़ाई में मर गया | ||
+ | रानी कढ़ाई में मर गई | ||
+ | और बेटा ! | ||
+ | कहते हैं पढ़ाई में मर गया | ||
+ | |||
+ | लेकिन राजा का दिया हुआ धन | ||
+ | धन नहीं रहा | ||
+ | धन वचन हुआ | ||
+ | और बढ़ता गया | ||
+ | और फिर वही बात | ||
+ | हर सभ्यता के मुहाने पर | ||
+ | एक औरत की जली हुई लाश | ||
+ | और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां | ||
+ | ये लाश जली नहीं है | ||
+ | जलाई गयी है दोस्तों ! | ||
+ | ये हड्डियां बिखरी नहीं, | ||
+ | बिखेरी गयीं हैं | ||
+ | ये आग लगी नहीं | ||
+ | लगाई गयी है | ||
+ | ये लड़ाई | ||
+ | छिड़ी नहीं, छेड़ी गयी है | ||
+ | लेकिन कविता भी लिखी नहीं | ||
+ | लिक्खी गयी है | ||
+ | और जब कविता | ||
+ | लिक्खी जाती है तो आग भड़क जाती है | ||
+ | |||
+ | मैं कहता हूं तुम उसे | ||
+ | इस आग से बचाओ मेरे लोगों | ||
+ | पूरब के लोगों ! | ||
+ | मुझे इस आग से बचाओ ! | ||
+ | जिनके सुंदर खेतों को तलवार | ||
+ | की नोकों से जोता गया | ||
+ | जिनकी फसलों को रथों | ||
+ | के चक्कों से रौंदा गया | ||
+ | तुम पश्चिम के लोगों ! | ||
+ | मुझे इस आग से बचाओ ! | ||
+ | जिनकी स्त्रियों को बाजार में बेचा गया | ||
+ | जिनके बच्चों को चिमनियों मे झोंका गया | ||
+ | तुम उत्तर के लोगों ! | ||
+ | मुझे इस आग से बचाओ | ||
+ | जिनके पुरखों की पीठ पर पहाड़ लादकर तोड़ा गया | ||
+ | तुम सुदूर दक्षिण के लोग ! | ||
+ | मुझे इस आग से बचाओ | ||
+ | जिनकी बस्तियों को दावाग्नि में झोंका गया | ||
+ | जिनके नावों को अतल जलराशियों में डुबोया गया | ||
+ | तुम वे सारे लोग मिलकर मुझे बचाओ | ||
+ | जिसके खून के गारे से | ||
+ | पिरामिड बनें, मिनारें बनीं | ||
+ | दीवारें बनीं | ||
+ | क्योंकि मुझको बचाना उस औरत को बचाना है | ||
+ | जिसकी लाश | ||
+ | मोहनजोदाड़ो की तालाब के आखिरी सीढ़ी पर पड़ी है | ||
+ | मुझको बचाना | ||
+ | उन इंसानों को बचाना है | ||
+ | जिनकी हड्डियां तालाब में बिखरी पड़ी हैं | ||
+ | मुझको बचाना | ||
+ | अपने पुरखों को बचाना है | ||
+ | मुझको बचाना, अपने बच्चों को बचाना है | ||
+ | तुम मुझे बचाओ</poem> |
16:24, 21 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण
मैं साइमन
न्याय के कटघरे में खड़ा हूं
प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दें
मैं वहां से बोल रहा हूं
जहां मोहनजोदाड़ो के तालाब की आखिरी सीढ़ी है
जिस पर एक औरत की जली हुई
लाश पड़ी है
और तालाब में इंसानों की हड्डियां
बिखरी पड़ी हैं
इसी तरह एक औरत जली हुई लाश
आपको बेबिलोनियां में भी मिल जाएगी
और इसी तरह इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां
मेसोपोटामियां में भी
मैं सोचता हूं
और बारहा सोचता हूं
कि आखिर क्या बात है
कि प्राचीन सभ्यताओं
के मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश मिलती है
और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां मिलती हैं
जिनका सिलसिला
सीथिया के चट्टानों से लेकर
बंगाल के मैदानों तक
और सवाना के जंगलों से लेकर
कान्हा के वनों तक चलता जाता है
एक औरत जो मां हो सकती है
बहिन हो सकती है
बीबी हो सकती है
बेटी हो सकती है
मैं कहता हूं
तुम हट जाओ मेरे सामने से
मेरा खून कलकला रहा है
मेरा कलेजा सुलग रहा है
मेरी देह जल रही है
मेरी मां को, मेरी बहिन को, मेरी बीबी को
मेरी बेटी को
मारा गया है
मेरी पुरख़िनें
आसमान में आर्तनाद कर रही हैं
मैं इस औरत की जली हुई लाश पर
सर पटक कर जान दे देता
अगर मेरे एक बेटी ना होती दोस्तों !
और बेटी है जो कहती है
कि पापा तुम बेवजह ही
हम लड़कियों के बारे में
इतने भावुक होते हो
हम लड़कियां तो लकड़ियां होती हैं
जो बड़ी होने पर चूल्हे में लगा दी जाती हैं
...ये इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां
रोमन गुलामों की भी हो सकती हैं दोस्तों !
और बंगाल के जुलाहों की भी
या अति आधुनिक
वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की
साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है
चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो
या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य
जिसका एक ही काम होता है कि
पहाड़ों पर, पठारों पर, नदी किनारे
सागर तीरे, मैदानों में
इंसानों की हड्डियाँ बिखेर दें
जो इतिहास को तीन वाक्यों में
पेश करने का दावा करता है
कि हमने धरती पर सोले
भड़का दिए
कि हमने धरती में सरारे भर दिए
कि हमने धरती पर इंसानों की
हड्डियां बिखेर दीं
लेकिन मैं
स्पार्टकस का वंशज
स्पार्टकस की प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूं
कि जाओ !
कह दो सीनेट से
कि हम सारी दुनिया के गुलामों को
इकठ्ठा करेंगे
और एक दिन रोम आयेंगे ज़रूर
लेकिन हम कहीं नहीं जायेंगे
क्योंकि ठीक इसी समय
जब मैं
यह कविता आपको सुना रहा हूं
लातिन अमरीकी मजदूर
महान साम्राज्य के लिए
कब्र खोद रहा है
और भारतीय मजदूर
उसके पालतू चूहे के बिलों में
पानी भर रहा है
एशिया से लेकर अफ्रीका तक
घृणा की जो आग लगी है
वो आग बुझ नहीं सकती है दोस्तों !
क्योंकि
वो आग, एक औरत की जली हुई लाश की आग है
वह आग इंसानों की बिखरी हुई हड्डियों की आग है
इतिहास में पहली स्त्री हत्या
उसके बेटे अपने बाप के कहने पर की
जमदग्नि ने कहा-
वो परशुराम !
मैं तुमसे कहता हूं कि अपनी मां का वध कर दो
और परशुराम ने कर दिया
इस तरह पुत्र, पिता का हुआ और पितृसत्ता आई
पिता ने अपने पुत्रों को मारा
जाह्नवी ने अपनी पति से कहा
कि मैं तुमसे कहती हूं
कि मेरी संतानों को मुझमें डुबो दो
और राजा शांतनु ने अपनी संतानों को
गंगा में डुबो दिया
लेकिन शांतनु जाह्नवी का नहीं हुआ
क्योंकि राजा किसी का नहीं होता
लक्ष्मी किसी की नहीं होती
धर्म किसी का नहीं होता
लेकिन सब राजा के होते हैं
गाय भी, गंगा भी, गीता भी, गायत्री भी
और ईश्वर तो खैर राजा के घोड़ों को घास ही छीलता रहा
बड़ा नेक था बेचारा
राजा का स्वामिभक्त
पर अफसोस है कि अब नहीं रहा
बहुत दिन हुए मर गया
...और जब मरा तो राजा ने उसे खफ़न भी नहीं दिया
दफ़न के लिए दो ग़ज़ ज़मीन भी नहीं दी
किसी को नहीं पता है कि ईश्वर को
कहां दफ़नाया गया
ईश्वर मरा अंततोगत्वा
और
उसका मरना ऐतिहासिक सिद्ध हुआ
ऐसा इतिहासकारों का मत है
इतिहासकारों का मत यह भी है कि
राजा भी मरा, उसकी रानी भी मरी
और उसका बेटा भी मर गया
राजा लड़ाई में मर गया
रानी कढ़ाई में मर गई
और बेटा !
कहते हैं पढ़ाई में मर गया
लेकिन राजा का दिया हुआ धन
धन नहीं रहा
धन वचन हुआ
और बढ़ता गया
और फिर वही बात
हर सभ्यता के मुहाने पर
एक औरत की जली हुई लाश
और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां
ये लाश जली नहीं है
जलाई गयी है दोस्तों !
ये हड्डियां बिखरी नहीं,
बिखेरी गयीं हैं
ये आग लगी नहीं
लगाई गयी है
ये लड़ाई
छिड़ी नहीं, छेड़ी गयी है
लेकिन कविता भी लिखी नहीं
लिक्खी गयी है
और जब कविता
लिक्खी जाती है तो आग भड़क जाती है
मैं कहता हूं तुम उसे
इस आग से बचाओ मेरे लोगों
पूरब के लोगों !
मुझे इस आग से बचाओ !
जिनके सुंदर खेतों को तलवार
की नोकों से जोता गया
जिनकी फसलों को रथों
के चक्कों से रौंदा गया
तुम पश्चिम के लोगों !
मुझे इस आग से बचाओ !
जिनकी स्त्रियों को बाजार में बेचा गया
जिनके बच्चों को चिमनियों मे झोंका गया
तुम उत्तर के लोगों !
मुझे इस आग से बचाओ
जिनके पुरखों की पीठ पर पहाड़ लादकर तोड़ा गया
तुम सुदूर दक्षिण के लोग !
मुझे इस आग से बचाओ
जिनकी बस्तियों को दावाग्नि में झोंका गया
जिनके नावों को अतल जलराशियों में डुबोया गया
तुम वे सारे लोग मिलकर मुझे बचाओ
जिसके खून के गारे से
पिरामिड बनें, मिनारें बनीं
दीवारें बनीं
क्योंकि मुझको बचाना उस औरत को बचाना है
जिसकी लाश
मोहनजोदाड़ो की तालाब के आखिरी सीढ़ी पर पड़ी है
मुझको बचाना
उन इंसानों को बचाना है
जिनकी हड्डियां तालाब में बिखरी पड़ी हैं
मुझको बचाना
अपने पुरखों को बचाना है
मुझको बचाना, अपने बच्चों को बचाना है
तुम मुझे बचाओ