भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"किसी को सर चढ़ाया जा रहा है / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(new)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य
 
|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem> </poem>
 
किसी को सर चढ़ाया जा रहा है
 
किसी को सर चढ़ाया जा रहा है
 
 
कोई रक्तन रुलाया जा रहा है
 
कोई रक्तन रुलाया जा रहा है
 
  
 
ये आँखें आधुनिक दिखने लगेंगी
 
ये आँखें आधुनिक दिखने लगेंगी
 
 
नया सपना मंगाया जा रहा है
 
नया सपना मंगाया जा रहा है
 
  
 
जो पहले से खड़ा है हाशिए पर
 
जो पहले से खड़ा है हाशिए पर
 
+
वही बाएँ दबाया जा रहा है
वही बाँए दबाया जा रहा है
+
 
+
  
 
कथाओं में नहीं अंट पा रहा जो
 
कथाओं में नहीं अंट पा रहा जो
 
 
उसे कविता में लाया जा रहा है
 
उसे कविता में लाया जा रहा है
 
  
 
बुजुर्गों ने जिसे पोसा है अब तक
 
बुजुर्गों ने जिसे पोसा है अब तक
 
 
वो रिश्ता अब भुनाया जा रहा है
 
वो रिश्ता अब भुनाया जा रहा है
 
  
 
हमारे बीच में जो अनकहा था
 
हमारे बीच में जो अनकहा था
 
 
वो शब्दों से मिटाया जा रहा है
 
वो शब्दों से मिटाया जा रहा है
 
  
 
मैं कुर्बानी का बकरा तो नहीं हूँ?
 
मैं कुर्बानी का बकरा तो नहीं हूँ?
 
 
बड़ी इज्जत से लाया जा रहा है
 
बड़ी इज्जत से लाया जा रहा है
 +
</poem>

18:12, 18 जून 2020 का अवतरण

 

किसी को सर चढ़ाया जा रहा है कोई रक्तन रुलाया जा रहा है

ये आँखें आधुनिक दिखने लगेंगी नया सपना मंगाया जा रहा है

जो पहले से खड़ा है हाशिए पर वही बाएँ दबाया जा रहा है

कथाओं में नहीं अंट पा रहा जो उसे कविता में लाया जा रहा है

बुजुर्गों ने जिसे पोसा है अब तक वो रिश्ता अब भुनाया जा रहा है

हमारे बीच में जो अनकहा था वो शब्दों से मिटाया जा रहा है

मैं कुर्बानी का बकरा तो नहीं हूँ? बड़ी इज्जत से लाया जा रहा है </poem>