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"मेरे दिमाग़ का एक डर मेरी तलाश में है / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर

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न नींद है न कोई ख़्वाब आरज़ू न कोई थकन
 
न नींद है न कोई ख़्वाब आरज़ू न कोई थकन
तो क्यों ये ज़िस्म का बिस्तर मेरी तलाश में है ।
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तो क्यों ये जिस्म का बिस्तर मेरी तलाश में है ।
  
 
बदल गया है ज़माना बदल गई तस्वीर,
 
बदल गया है ज़माना बदल गई तस्वीर,
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वो एक ख़बर-सा बराबर मेरी तलाश में  है ।
 
वो एक ख़बर-सा बराबर मेरी तलाश में  है ।
  
जिसे ’क़िताब के  बाहर’ तलाश मैंने किया,
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जिसे ’किताब के  बाहर’ तलाश मैंने किया,
 
वही हयात के बाहर मेरी तलाश में  है ।  
 
वही हयात के बाहर मेरी तलाश में  है ।  
 
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14:51, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

मेरे दिमाग़ का एक डर मेरी तलाश में है ।
बहुत दिनों से मेरा घर मेरी तलाश में है ।

मैं जिसकी आँख का पानी रहा वही मुझको,
नज़र से अपनी गिराकर मेरी तलाश में है ।

मैं भाग जाऊँ कहाँ छोड़-छाड़ के दुनिया,
कि अब तो फ़ोन प दफ़्तर मेरी तलाश में है ।

मैं किस के नाम प रोऊँ मैं किस को दूँ इल्ज़ाम,
मेरे ही हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है ।

न नींद है न कोई ख़्वाब आरज़ू न कोई थकन
तो क्यों ये जिस्म का बिस्तर मेरी तलाश में है ।

बदल गया है ज़माना बदल गई तस्वीर,
मेरे लठैत का जांगर मेरी तलाश में है ।

मैं नींद-नींद छिपा फिरता ख़्वाब-ख़्वाब मगर,
वो एक ख़बर-सा बराबर मेरी तलाश में है ।

जिसे ’किताब के बाहर’ तलाश मैंने किया,
वही हयात के बाहर मेरी तलाश में है ।