भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम निहारेंगे जिसको , उधर जाएगी / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> हम निहारेंगे जिसको , उधर जाएगी हमसे पहले, हमारी नज़र जाएगी फूल ...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
 +
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
 +
}}
 +
[[Category:ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
 
हम निहारेंगे जिसको , उधर जाएगी
 
हम निहारेंगे जिसको , उधर जाएगी

19:23, 21 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण

हम निहारेंगे जिसको , उधर जाएगी
हमसे पहले, हमारी नज़र जाएगी

फूल गमले की हद में खिलेंगे मगर
हर तरफ़ गंध उनकी बिखर जाएगी

रूप को क्या पता था कि उस भूल से
जिंदगी यूँ विवादों से भर जाएगी

जिस जगह तक समाचार जाते नहीं
उस जगह तक हमारी खबर जाएगी!

झील की शांति में गिर पड़ी कंकरी
दूर तक, द्वंद्व बन कर लहर जाएगी

क्रोध करने से वो काम होते नहीं
एक मुस्कान जो काम कर जाएगी

जगमगाएगी दीपावली की तरह
जो अमावस उजाले को ‘वर’ जाएगी.