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"जा रहे हो, मगर, लौटना / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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मन की बस्ती में डर लौटना | मन की बस्ती में डर लौटना | ||
21:11, 26 सितम्बर 2008 का अवतरण
जा रहे हो मगर लौटना
एक दिन अपने घर लौटना
जीतना भी जरूरी नहीं
लौटना हार कर लौटना
मुझको जादू सरीखा लगा—
मौन शब्दों में स्वर लौटना
घर से भागी नदी का हुआ
स्वप्न में रात भर लौटना
उस शिविर में पहुँचने के बाद
है असंभव इधर लौटना
ये तो चिंताजनक है बहुत-
मन की बस्ती में डर लौटना
पिंजरा खुलते ही पंछी उड़े
मुक्त होना है ‘पर’ लौटना