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"जो भूलतीं भी नहीं / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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जो भूलतीं ही नहीं,याद भी नहीं आतीं . | जो भूलतीं ही नहीं,याद भी नहीं आतीं . | ||
− | + | तेरी निगाह ने क्यों वो कहानियाँ न कहीं . | |
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तू शाद खोके उसे और उसको पाके ग़मी. | तू शाद खोके उसे और उसको पाके ग़मी. | ||
− | + | 'फ़िराक़' तेरी मोहब्बत का कोई ठीक नहीं. | |
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ह्यात मौत बने,मौत फिर ह्यात बने. | ह्यात मौत बने,मौत फिर ह्यात बने. | ||
− | + | तेरी निगाह से ये मोजज़ा भी दूर नहीं. | |
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हज़ार शुक्र की मायूस कर दिया तूने. | हज़ार शुक्र की मायूस कर दिया तूने. | ||
− | + | ये और बात कि तुझसे भी कुछ उम्मीदें थीं. | |
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खुदा के सामने मेरे कसूरवार हैं जो. | खुदा के सामने मेरे कसूरवार हैं जो. | ||
− | + | उन्हीं से आँखें बराबर मेरी नहीं होतीं. | |
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मुझे ये फिकर कि जो बात हो,मुद्ल्लल हो. | मुझे ये फिकर कि जो बात हो,मुद्ल्लल हो. | ||
− | + | वहाँ ये हाल कि बस हाँ तो हाँ नहीं तो नहीं. | |
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यूँ ही सा था कोई जिसने मुझे मिटा डाला. | यूँ ही सा था कोई जिसने मुझे मिटा डाला. | ||
− | + | न कोई नूर का पुतला नकोई ज़ोहरा-जबीं. | |
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22:21, 25 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
जो भूलतीं ही नहीं,याद भी नहीं आतीं .
तेरी निगाह ने क्यों वो कहानियाँ न कहीं .
तू शाद खोके उसे और उसको पाके ग़मी.
'फ़िराक़' तेरी मोहब्बत का कोई ठीक नहीं.
ह्यात मौत बने,मौत फिर ह्यात बने.
तेरी निगाह से ये मोजज़ा भी दूर नहीं.
हज़ार शुक्र की मायूस कर दिया तूने.
ये और बात कि तुझसे भी कुछ उम्मीदें थीं.
खुदा के सामने मेरे कसूरवार हैं जो.
उन्हीं से आँखें बराबर मेरी नहीं होतीं.
मुझे ये फिकर कि जो बात हो,मुद्ल्लल हो.
वहाँ ये हाल कि बस हाँ तो हाँ नहीं तो नहीं.
यूँ ही सा था कोई जिसने मुझे मिटा डाला.
न कोई नूर का पुतला नकोई ज़ोहरा-जबीं.