भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सत्य ही जब कहानी लगे / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी }} [[Cate...)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
 
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
 +
|अनुवादक=
 
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
 
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
+
<poem>
 
सत्य ही जब कहानी लगे
 
सत्य ही जब कहानी लगे
 
+
तब तो गूँगा भी ज्ञानी लगे
तब तो गूँगा भी ज्ञानी लगे  
+
 
+
  
 
आज के लोक—व्यवहार में
 
आज के लोक—व्यवहार में
 
+
कुछ अधिक सावधानी लगे
कुछ अधिक सावधानी लगे  
+
 
+
  
 
काले पैसे को दिल खोल कर
 
काले पैसे को दिल खोल कर
 
 
देने वाला ही ‘दानी’ लगे
 
देने वाला ही ‘दानी’ लगे
 
  
 
उस जगह नाग भी आएँगे
 
उस जगह नाग भी आएँगे
 
+
जिस जगह रातरानी लगे
जिस जगह रातरानी लगे  
+
 
+
  
 
कुछ तो संयम से उपयोग कर
 
कुछ तो संयम से उपयोग कर
 
+
तन की चादर पुरानी लगे
तन की चादर पुरानी लगे  
+
 
+
  
 
प्यास बुझती नही ओस से
 
प्यास बुझती नही ओस से
 
+
प्यास को सिर्फ पानी लगे
प्यास को सिर्फ पानी लगे  
+
 
+
  
 
राजनैतिक हुई इसलिए
 
राजनैतिक हुई इसलिए
 
 
व्यर्थ संतों की बानी लगे
 
व्यर्थ संतों की बानी लगे
 +
</poem>

23:48, 20 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

सत्य ही जब कहानी लगे
तब तो गूँगा भी ज्ञानी लगे

आज के लोक—व्यवहार में
कुछ अधिक सावधानी लगे

काले पैसे को दिल खोल कर
देने वाला ही ‘दानी’ लगे

उस जगह नाग भी आएँगे
जिस जगह रातरानी लगे

कुछ तो संयम से उपयोग कर
तन की चादर पुरानी लगे

प्यास बुझती नही ओस से
प्यास को सिर्फ पानी लगे

राजनैतिक हुई इसलिए
व्यर्थ संतों की बानी लगे