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"व्यक्तिगत छप्पर ने आकर्षित किया / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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आज भी, भाती है आदिम छेड़—छाड़, | आज भी, भाती है आदिम छेड़—छाड़, | ||
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मुझको उस शायर ने आकर्षित किया | मुझको उस शायर ने आकर्षित किया | ||
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जिसमें वर्जित फल को चखने की थी चाह | जिसमें वर्जित फल को चखने की थी चाह | ||
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उसको सचमुच आजतक देखा नहीं | उसको सचमुच आजतक देखा नहीं | ||
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22:47, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
व्यक्तिगत छप्पर ने आकर्षित किया
सब कि अपने घर ने आकर्षित किया
हम नहीं 'सत्यम्'—'शिवम्' की राह पर
बस हमें सुंदर ने आकर्षित किया
आज भी, भाती है आदिम छेड़—छाड़,
झील को कंकर ने आकर्षित किया
शे‘र कहता था जो सुध—बुध भूलकर
मुझको उस शायर ने आकर्षित किया
जिसमें वर्जित फल को चखने की थी चाह
उस अनैतिक डर ने आकर्षित किया
उसको सचमुच आजतक देखा नहीं
इसलिए ईश्वर ने आकर्षित किया
आज भी, सोए हुए पुरुषार्थ को
जोखिमों के स्वर ने आकर्षित किया