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|रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर
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{{KKCatGeet}}<poem>बहुत दिन तक बड़ी उम्मीद से देखा तुम्हें जलधर,<br>मगर क्या बात है ऎसीऐसी, कहीं गरजे कहीं बरसे ।<br><br>बरसे।
जवानी पूछती मुझसे बुढ़ापे की कसम देकर,<br>कहो क्यों पूजते पत्थर रहे तुम देवता कहकर ।<br><br>कहकर।
कहीं तो शोख सागर है , मचलता भूल मर्यादा,<br>कहीं कोई अभागिन चातकी दो बूँद को तरसे ।<br><br>तरसे।
किसी निष्ठुर हृदय की याद आती जब निशानी की,<br>मुझे तब याद आती है कहानी आग-पानी की ।<br><br>की।
किसी उस्ताद तीरन्दाज़ के पाले पड़ा जीवन,<br>निशाने साधता दो-दो पुराने एक ही शर से ।<br><br>से।
नहीं जो मंदिरों में है, वही केवल पुजारी है,<br>सभी को बाँटता जो है, कहीं वह भी भिखारी है ।<br><br>है।
प्रतीक्षा में जगा जो भोर तक तारा, मिटा-डूबा<br>जगाता पर अरूण सोए कमल-दल को किरण-कर से।<br><br/poem>
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