भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बर्लिन की दीवार / 40 / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:28, 18 जून 2022 के समय का अवतरण
अंत में हम
यह जान लें
पत्थर
निर्जीव नहीं हैं।
चाहे वो
गलियों के हों
या हों
महलों के
या पाये जाते हों
पहाड़ों पर
या खोदकर
निकाले जाते हों
खदानों से,
क्योंकि
ये पत्थर
जिंदगी का
उतना ही आवश्यक
मूल तत्व है
वैसे ही जितना है
कोई भी खनिज।
चाहे वो
कोयला हो
या हो पन्ना,
पत्थरों के
गर्भ से ही
फूटकर
निकलता है।