"किसी स्त्री की प्रथम आसक्ति / मनीष यादव" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:24, 2 मई 2023 के समय का अवतरण
किसी स्त्री की प्रथम आसक्ति
उसके विषाद को बूझ सकने वाले
पुरुष की इच्छा तक तो होनी ही चाहिए
विश्राम कक्ष के सिरहाने बैठ
अपने अंतर्मन की पँखुड़ियों को स्वयं खोल दे वो
उसके समक्ष!
ऐसे निरायास पुरुष की कामना
कहीं कोई अपराध तो नही?
सत्ता को-पितृ / मातृ
वाद को-नारी / पुरुष , में विभक्त करने से पूर्व
केवल एक न्यून विचार अवश्य करें कि
आपके शब्दों ने आपके संबंध के मघ्य लगाव उत्पन्न किया है या दुराव
अग्नि के चक्कर से मिले वैवाहिक स्टांप से
उकता चुकी स्त्री का चेहरा सौंदर्यपूर्ण
और आत्मा , सड़े हुए फफूंद की भाँति गली हो
तो क्या?
आमंत्रण के भोज तक सीमीत तुम्हारा समाज़
न्याय दिलाने को आगे आएगा
हे पुरुष! सोचो;
क्या तुम्हारी स्त्री के प्रतीक्षा मात्र का कर्ज़ भी
तुम्हारे द्वारा भेंट किया कोई आभूषण चुका सकता है?
अगर तुम्हारा उत्तर-हाँ है ,
तो मेरे एक प्रश्न का जवाब दो –
उसके पिता के दिए दहेज़ के बदले
तुम उसके पति हुए या दास?