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बारी-बारी से इन सालों में बीते अन्धेरे को धुनता हूँ
ये गुज़रे साल कुछ तो कहेंगे, बतलाएँगे बदलाव की बात
वर्षा, धरती और औ’ प्रेम सहित  कब सबका बदलेगा सहित सबका बदल जाएगा रे ये गात !  
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