भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हमने गर आसमाँ उठाया है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
धागे को रास्ता दिखाया है। | धागे को रास्ता दिखाया है। | ||
− | कोई तालाब बन गया | + | कोई तालाब बन गया होगा |
कोठी ऊँची अगर उठाया है। | कोठी ऊँची अगर उठाया है। | ||
19:33, 12 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण
हमने गर आसमाँ उठाया है
जगहें सबके लिए बनाया है।
सूई ने कब कहाँ सिलाई की
धागे को रास्ता दिखाया है।
कोई तालाब बन गया होगा
कोठी ऊँची अगर उठाया है।
आँखें रखने का है गिला हमको
अंधों ने आइना दिखाया है।
बेसुध हो लोग सो गये जब-जब
हमने आवाज़ दे जगाया है।